________________
on
एक व्यक्ति समझदार और अनुभवी था। वह बकरी को जंगल में ले गया। वहां जैसे ही बकरी चरने लगी, उसने उसके सिर पर एक डंडा जमा दिया। बकरी संभल गई। फिर आगे गई, चरने लगी और फिर एक डंडा जमा दिया। दो दिन तक दिन-रात ऐसा किया कि जैसे ही बकरी चरने लगती, वह उस पर डंडा जमा देता। मार खाते-खाते बकरी का दिमाग बदल गया। मनोविज्ञान की भाषा में कंडीशंड माइंड हो गया। अब बकरी को लगने लगा कि मैं चरूंगी और डंडा पड़ेगा। उसने चरना छोड़ दिया। दो दिन में प्रयोग सफल हो गया। वह उस बकरी को लेकर राजा के सामने आया, बोला-'महाराज! जो आप चाहते थे, वह हो गया है। यह बकरी तैयार है। अब आप इसको चराएं।'
राजा ने अपने सामने चारा मंगाया और बकरी को खुला छोड़ दिया। बकरी खड़ी है पर चारे की ओर मुंह नहीं डाल रही है। उसमें एक चेतना जाग गई, मस्तिष्क का वह प्रकोष्ठ जाग गया-खाने को जैसे ही मुंह खोलूंगी, डंडा तैयार है। वह कुछ क्षण तक खड़ी रही पर चारा खाने के लिए मुंह नहीं चलाया।
राजा ने कहा-'आश्चर्यम्-बड़ा आश्चर्य है। यह कैसे हुआ कि बकरी चर नहीं रही है!' उसने कहा-'हो गया।' 'कैसे हुआ?'–विस्मय भरे स्वर में राजा बोला। 'महाराज! उपाय जानें तो सब कुछ हो सकता है।'
नहीं आज भी बीज विरल पर बोने वाला कोई-कोई।
आंसू का है मार्ग सरल पर रोने वाला कोई-कोई।। 'महाराज! आज भी बीज बोया जा सकता है। ऐसा नहीं है कि आज उर्वरा समाप्त हो गई है। लोग कहते हैं कलिकाल आ गया। कोई कलिकाल नहीं है। आज सतयुग भी चल रहा है। जो चाहता है उसके लिए सतयुग है और जो नहीं चाहता उसके लिए कलियुग। जिस व्यक्ति ने धर्म के मर्म को समझा है, उसके लिए सतयुग चल रहा है। जिसने नशा, व्यसन, बुराई को समझा है, उसके लिए सतयुग में भी कलियुग चल रहा है।
राजा ने साश्चर्य पूछा-'यह कैसे हुआ?'
उसने अपना प्रयोग बताते हुए कहा-'राजन्! अगर नियंत्रण की शक्ति हाथ में रहती है तो सब कुछ बदला जा सकता है।'
राजा का विस्मय अब भी शांत नहीं हुआ। उसने फिर पूछा-'किया कैसे तुमने?'
'राजन्! जब-जब बकरी ने खाना चाहा तब-तब मैंने उसके सिर पर डंडा लगाया। उसके दिमाग में यह बात बैठ गई कि खाने को मुंह करूंगी और डंडा सिर पर पड़ेगा। उसका खाना छूट गया।'
'प्रभव! बस एक अंकुश अथवा डंडे की जरूरत है। तुम्हारी सारी कामनाएं बदल जाएंगी।' धर्म और है क्या? धर्म है कामना पर एक अंकुश।
हयरस्सि गयंकुश पोयपडागा भूयाई, इमाइं अट्ठारस ठाणाइं सम्मं संपडिलेहियव्वाइं भवई। ३१२
गाथा परम विजय की