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कर्मशास्त्र के दो शब्द हैं-औदयिक भाव और क्षायोपशमिक भाव। क्षायोपशमिक भाव है आत्मा का विकास और औदयिक भाव है आत्मा का अवरोध, आवरण और विकार। कहां हो रहा है हमारी शक्ति का उपयोग?
प्रभव ने सोचा था मैंने जो बात कही है जम्बकुमार एकदम बदल जायेंगे किन्तु जब जम्बूकुमार का प्रत्युत्तर सुना तो प्रभव का मस्तिष्क प्रकंपित हो गया। उसने सोचा मैं किसको उपदेश देने लगा। मैंने समझा था यह १६ वर्ष का युवक है। यह मेरे प्रभाव में आ जायेगा किन्तु यह तो गुदड़ी में गोरख है। यह तो महान तत्त्ववेत्ता है, हर तथ्य को जानता है। प्रभव के विचारों में परिवर्तन आ गया। ऐसे ही तो आदमी बदलता है। जब एकपक्षीय बात सुनता है तब कुछ पता नहीं चलता। इसीलिए संतजन बार-बार कहते हैं-कोरी जीविका में मत रहो, जीवन को भी समझने का प्रयत्न करो। कोरे समाचार-पत्र को ही मत पढ़ो, महावीर की वाणी को भी पढ़ने का प्रयत्न करो। केवल क्रिकेट और विकेट का ज्ञान मत रखो, थोड़ा तत्त्वज्ञान भी करो। ___आज के बच्चों में क्रिकेट और विकेट का इतना आकर्षण और रस है कि उस रस के सामने रसगुल्ले भी फीके हो जाते हैं। यह एकपक्षीय आकर्षण जीवन के रस को सोख लेता है। इसीलिए संतजन कहते हैं केवल एकपक्षीय चिन्तन मत करो। पदार्थ, शरीर और जीविका पर केन्द्रित मत बनो। एक संतुलन करो। उसको देखते हो तो अपने आपको भी देखो। उसको पढ़ते हो तो अपनी आत्मा को भी पढ़ो। ज्यादा न जानो तो कम से कम नौ पदार्थ, षड्द्रव्य, चार गति, पांच जाति आदि जो मुख्य-मुख्य बातें हैं उनको जानो, जिससे यह चिन्तन और अंकुश बना रहे कि मुझे गलत काम नहीं करना है, गलत रास्ते पर नहीं जाना है।
इन दिनों अनेक परिवार आए, उनके साथ अनेक बच्चे भी आए। मैंने पछा-नमस्कार मंत्र याद है? कुछ ने कहा याद है। कुछ ने कहा-याद नहीं है। मैंने माता-पिता से कहा-'यह तुम्हारी कमी है कि आठ वर्ष का लड़का हो गया और अभी तक नमस्कार मंत्र नहीं सिखाया।' जो इतनी भूल करते हैं, उन्हें बाद में पछताना भी पड़ता है। जो माता-पिता बच्चों को प्रारंभ से संस्कार नहीं देते, वे असंस्कारित बच्चे सबसे पहले उनके लिए ही समस्या बनते हैं। एक गृहस्थ के दोनों पक्ष बराबर होने चाहिए। संसार का पक्ष तो स्पष्ट है। उसके बिना काम नहीं चलता। धन के बिना भी काम नहीं चलता, पढ़ाई के बिना भी काम नहीं चलता पर दूसरे पक्ष को भुलाना हितकर नहीं होता। इन दिनों कुछ प्रोफेसर भी आए हुए हैं। पूज्य गुरुदेव से वार्तालाप हो रहा था। एक प्रोफेसर ने कहा-हम तो केवल वही पढ़ा रहे हैं जो पश्चिम से हमें मिला है। जब हम अध्यात्म की बात सुनते हैं तब ऐसा लगता है कि हम बहुत गलत काम कर रहे हैं। हमें दूसरे पक्ष को भी जानने का प्रयत्न करना चाहिए। ____जम्बूकुमार ने अध्यात्म का पक्ष रखा तो प्रभव का दिमाग भी विचलित हो गया। जम्बूकुमार ने सोचा-आज अच्छा मौका मिला है। यदि प्रभव का मानस बदल जाए, वैराग्य का रंग चढ़ जाए तो कितना अच्छा हो जाए। मुझे इसकी न वाशिंग करना है। ___ ब्रेन वाशिंग का कार्य सरल नहीं है फिर भी जम्बूकुमार ने मस्तिष्कीय धुलाई शुरू कर दी। क्या वह अपने प्रयत्न में सफल होगा? क्या दुर्दान्त चोर अपने दुष्कर्म से विरत हो सकेगा?
गाथा परम विजय की
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