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'प्रभव! कितना अंतर है। एक का ज्ञान विवाद के लिए है और दूसरे का ज्ञान ज्ञान-वृद्धि के लिए। एक का धन अहंकार के लिए है और दूसरे का धन सहयोग के लिए। एक की शक्ति दूसरों को सताने के लिए है और एक की शक्ति दूसरों की रक्षा के लिए।'
'प्रभव! सज्जन और दुर्जन की प्रकृति में कितना अंतर है। मैं तो सज्जन की भूमिका से भी ऊपर की बात कर रहा हूं और वह है आत्मा की भूमिका, अध्यात्म की भूमिका।'
'प्रभव! तुम महावीर को जानते हो?' 'हां, जानता हूं। मैंने तीर्थंकर महावीर का समवसरण देखा है।' 'क्या तुमने महावीर की वाणी भी सुनी है?' 'नहीं।'
'प्रभव! महावीर ने कहा है-तुम अपनी शक्ति का उपयोग आत्मा की खोज में करो, सत्य की खोज में करो। 'अप्पणा सच्चमेसेज्जा'-सत्य की खोज में स्वयं को लगाओ। मेत्तिं भूएसु कप्पए-सबके साथ मैत्री करो।'
'हां, यह बहुत सुन्दर उपदेश है।' _ 'प्रभव! तुम चोरी करते हो। क्या यह चोरी करना भी मैत्री है? तुमने क्या इस सत्य की खोज की है? दूसरों के घर धन आए तो उसे उठाकर ले जाना, दूसरों के प्राणों को लूटना....। आखिर तुम सिखाना क्या चाहते हो? तुम उपदेश देने में तो कुशल बन गये हो, पर पहले अपनी कमियों और दोषों को तो देखो।' छलनी एक दिन सूई से बोली-बहिन! तुम्हारा सब कुछ ठीक है पर तुम्हारे भीतर एक छेद है। इस
छेद को मिटा दो तो तुम अच्छी बन जाओ।'
सूई हंसी, बोली-'माताजी! मुझमें तो एक छेद है। आपमें तो छेद ही छेद भरे हैं। मुझे उपदेश दो, उससे पहले अपने आपको तो देखो। अपने छेद तो मिटा लो।'
'प्रभव! तुम मुझे उपदेश दे रहे हो, सोचने की बात कह रहे हो पर तुम भी तो कुछ सोचो। तुम्हारी शक्ति का उपयोग
कहां हो रहा है? दूसरों को सताने में हो रहा है या दूसरों की रक्षा में हो रहा है? तुम्हारे धन का उपयोग कहां हो रहा है? कोरा भोग में हो रहा है या समाज के लिए उसका सदुपयोग हो रहा है? तुम अनेक विद्याओं के जानकार हो, बहुत कुछ जानते हो पर तुम्हारे ज्ञान का उपयोग कहां हो रहा है?'
हर व्यक्ति यह सोचे कि मेरी शक्ति का उपयोग कहां हो रहा है? सबके पास शक्ति है, पर उसका उपयोग कहां हो रहा है? मोह को बढ़ाने में हो रहा है या मोह को घटाने में हो रहा है?
गाथा
परम विजय की
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