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'महाराज! जब समय मिलता है, कर लेता हूं।' 'कितना खाते हैं?' 'महाराज! एक लूखा फलका खाता हूं। उस अवधि में भी ५-१० बार फोन करना पड़ता है।' उसने बहुत व्यथा भरे स्वर में कहा-'आचार्यश्री! क्या करूं? पास में सब कुछ है पर भूख नहीं लगती।'
'आचार्यश्री! कभी-कभी तो मुझे अपने ड्राइवर से ईर्ष्या होती है। वह दस-बारह रोटी खा जाता है और मैं एक पतला फुलका भी नहीं खा सकता। मेरे मन में कभी-कभी यह प्रश्न भी उठता है कि यह धन मेरे लिए है या इसके लिए है?'
सत्यपि भोजने भोजन है पर खाने की शक्ति नहीं है। 'कुमार! दूसरी ओर की स्थिति भी तुम देखो।
परेषां भोजनं नास्ति, भोक्तुं शक्तिस्तु वर्तते।
द्वयं प्राप्य न भुजीत, यः स देवेन वंचितः।। कुछ ऐसे आदमी भी हैं जिनमें खाने की शक्ति है पर उनके पास भोजन नहीं है। जिनके पास भोजन है, उनमें खाने की शक्ति नहीं है। यह विधि की विडम्बना और संसार की विचित्रता है किन्तु जिसको ये दोनों मिल जाये-खाने की शक्ति भी और भोजन भी–फिर भी वह नहीं खाता है तो मानना चाहिए-उसका भाग्य रूठ गया है, वह भाग्य से वंचित हो गया है।'
'कुमार! वह कितना मूर्ख आदमी है, जिसे भोजन भी मिला, भूख भी है और खाने-पचाने की शक्ति भी है फिर भी वह नहीं खा रहा है।'
यथा वा दानशक्तिश्चेत्, गेहे द्रव्यं न वर्तते।
अथ चेत् स्वगृहे द्रव्यं, दानशक्तिर्न जायते।। कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो दान देना तो चाहते हैं पर उनके घर में धन नहीं होता। कुछ लोग ऐसे हैं, जिनके घर में धन तो बहुत है पर दान देना नहीं चाहते। वे कृपण और दरिद्र हैं।
आचार्य भिक्षु ने एक प्रकरण में बहुत सुंदर लिखा-दरिद्र कौन? जिसके घर में धन है पर देता नहीं है वह दरिद्र आदमी है। यह दरिद्र की एक नई परिभाषा है। इस दुनिया में दोनों प्रकार के लोग मिलते हैं-कुछ लोग ऐसे हैं जिनके पास देने की शक्ति है पर धन नहीं है। कुछ लोग ऐसे हैं जिनके पास धन है पर वे देना नहीं चाहते। जिसे भाग्य से दोनों मिल जाये देने की शक्ति भी और उदार हृदय भी फिर भी जो नहीं देता, वह मूढ़ आदमी है।
'कुमार! मैं चाहता हूं कि तुम मूर्ख और मूढ़ मत बनो।' एक चोर ने ऐसा उपदेश दिया कि कन्याएं और जम्बूकुमार अवाक् बन सुनते रहे।
प्रभव बोला-'कुमार! एक अंतिम बात मैं तुम्हें और कहना चाहता हूं, वह यह है-जिसके लिए लोग तपस्या करते हैं, वह संपदा तुम्हें प्राप्त है। तुम मुनि बनकर करोगे क्या? यह तुम मुझे समझा दो।'
गाथा
परम विजय की
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