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'हां, इससे भी बड़ा है।' 'मेढक ने फिर एक लंबी छलांग लगाई और पूछा-'क्या इतना बड़ा है?' 'इससे भी बहुत बड़ा है।' मेढक ने कुएं का पूरा चक्कर लगाया और पूछा-'क्या इतना बड़ा है?' राजहंस बोला-'नहीं, इससे भी बहुत बड़ा है।' मेढक आवेश से भर उठा, बोला-'अरे दुष्ट पक्षी! तुम झूठ बोल रहे हो।' 'क्यों?' 'मेरे घर से बड़ा तुम्हारा घर नहीं हो सकता। तुम झूठी बकवास कर रहे हो।' राजहंस ने सोचा-अब तो यहां रहना अच्छा नहीं है। जहां इतना अज्ञान है वहां रहना ठीक कैसे होगा?
कवि ने कहा-कुएं का मेढक ही ऐसी बात कह सकता है। कवि ने इसका हेतु भी बतलाया नीचः स्वल्पेन गर्वी भवति हि विषयाः नापरे येन दृष्टाः-जो नीचे रहता है, वह थोड़ा सा पाकर भी गर्विष्ठ हो जाता है। जिसने कुएं के बाहर की दुनिया को नहीं देखा, वह उसी को देखकर अपने अहंकार का पोषण करता है। जिसने न कभी तालाब को देखा, न पुष्करिणी को देखा, न झील और नदी को देखा, न समुद्र को देखा। वह कुएं को देखकर ही गर्व करेगा, अहंकारी बन जायेगा।
'प्रिये! मैं कुएं का मेढक नहीं हूं। मैंने महावीर वाणी से और सुधर्मा स्वामी की देशना से विशाल सचाई को देखा है। जो सत्य आकाश जितना बड़ा है, आकाश से भी बड़ा है उस विशाल सत्य को मैंने देख लिया है। अब मैं कुएं का मेढक बनकर रहना नहीं चाहता। जो केवल काम-भोग और विषय में निमग्न रहते हैं वे कूपमण्डूक बने हुए हैं। मैं राजहंस हूं, मैं कुएं का मेढक नहीं हूं।'
___ 'प्रिये! तुम बुरा मत मानना। तुमने केवल इंद्रियों के स्वल्प विषयों को देखा है। उनको ही सचाई मान लिया है। तुम उसी सत्य की परिक्रमा कर रही हो। जैसे वह तेली का बैल कोल्हू की परिक्रमा करता है वैसे ही तुम भी विषय रूपी कोल्हू की परिक्रमा कर रही हो। तुमने पांच इंद्रियों के विषयों को सत्य मान लिया और केवल उसकी ही परिक्रमा चल रही है।'
'प्रिये! इंद्रिय-विषयों के बाहर भी दुनिया है, इन विषयों से परे भी आत्मा है, चेतना है, उसका विशाल जगत् है और इतना सुखद जगत् है कि तुम उसको जानती ही नहीं हो। तुम घूम-फिर कर केवल इसी बात पर आ जाती हो और भोग-विलास का आमंत्रण देती हो। केवल भोग-विलास का अर्थ है-यह चेतना का बैल रात-दिन घूमता रहे, इंद्रिय-विषयों के कोल्हू के चारों ओर चक्कर लगाता रहे।'
'प्रिये! कोल्हू का बैल चक्कर लगाता है तब उसकी आंखें बंद रहती हैं और गले में घंटी रहती है।'
एक दिन एक एडवोकेट तेली के घर गया। किसी कार्य के विषय में बातचीत करने लगा। उसके सामने कोल्हू है, घाणी है और बैल घूम रहा है। बातचीत करते-करते उस विद्वान व्यक्ति ने पूछा-'अरे भैया! इसके पट्टी क्यों बांध रखी है?' २७४
गाथा परम विजय की