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शेर बोला-'अरे! तुम तो शेर हो। भेड़ों के साथ कैसे आ गए?'
स्वत्व विस्मृत सिंह शिशु को सिंह का दर्शन मिला। चिर समाधि विलीन योगीराज का आसन हिला। कौन कहता है अरे ईश्वर मिलेगा साधना से।
मैं स्वयं वह, वह स्वयं मैं भावमय आराधना से। उसका पौरुष जाग गया। वह सचमुच शेर बन गया। उसने भेड़ों का साथ छोड़ा और सिंह के साथ चला गया। जब स्वत्व की विस्मृति होती है, आदमी अपने आपको भूल जाता है तब ये सारी स्थितियां बनती हैं।
दो स्त्रियां बात कर रही थीं। बातचीत का विषय था पति की आदतें। एक स्त्री बोली मेरा पति बहुत भुलक्कड़ है। एक दिन बाजार में झोला लेकर शाक-सब्जी लाने गया। घंटा भर बाजार में घूमा, वापस आकर खाली झोला रख दिया और बोला-'मैं झोला लेकर बाजार में गया था पर मुझे यह याद नहीं रहा कि मैं क्यों गया था।' इतना भुलक्कड़ है मेरा पति। ___उसने कहा-बहन! तुम मेरे पति के भुलक्कड़पन की बात सुनो। एक दिन मैं अपनी सहेलियों के साथ बाजार जा रही थी। रास्ते में मेरा पति मुझे मिला, उसने कहा-'बहनजी! नमस्ते! मैंने आपको कहीं देखा तो है।' इतना भुलक्कड़ है मेरा पति।
ये कहानियां हास्यास्पद-सी लगती हैं। प्रश्न आता है कि ऐसा हो सकता है क्या? हम पत्नी और शाक-सब्जी की बात छोड़ दें। कितने लोग अपने आपको जानते हैं! कौन व्यक्ति अपने आपको भुला नहीं।
गाथा रहा है? मैं कौन हूं? इसका कितने व्यक्तियों को पता है। जब व्यक्ति अपने आपको भुला सकता है तो
परम विजय की पत्नी और शाक-सब्जी को क्यों नहीं भूला सकता?
प्रभव ने जम्बूकुमार की बात सुनी। वह वैसे उबुद्ध हो गया जैसे वह स्वत्व विस्मृत सिंह शिशु हुआ। उसके चित्त में खलबली-सी मच गई। वह चिंतन में डूब गया। मंथन में लग गया-'अरे, मैं कौन था? क्या हो गया?'
प्रभव का मन जिज्ञासा और उत्सुकता से भर गया। वह जम्बूकुमार से कुछ कहना चाहता है। क्या वह अपनी बात कह सकेगा?
जम्बूकुमार उसके मानस को बदलना चाहता है। क्या वह अपने प्रयत्न में सफल बनेगा? इस प्रश्न का उत्तर इस क्षण कौन दे सकता है?
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