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गाथा
धन के लिए न जाने कितनी हत्याएं होती हैं, कितने निरपराध नवयुवकों को मार दिया जाता है।
'बहिनो! तुम कह रही थी कि आप इस धन का भोग करें, फिर साधु बनना। पर धन का कौन भोग करेगा? आज यदि चोरी हो जाती, सारा धन जाता तो तुमको कैसा लगता? क्या तुम्हें रोटी भाती?'
'नहीं स्वामी! जीना भी बहुत मुश्किल हो जाता।'
आज एक परिवार आया। कुछ दिन पहले चोरी हो गई थी। वह बहिन इतनी दुःखी थी कि कहा नहीं जा सकता। हमने बहुत समझाया-'अरे! धन आता है, चला जाता है। इतनी दुःखी क्यों बनती हो? पर उसका तो आर्तध्यान कम नहीं हो रहा था, आंसू थम नहीं रहे थे।
'बहिनो! इतना धन तुम्हारे माता-पिता से आया और इतना मेरा अपना धन। ये सारा वैभव चोर ले जाते तो क्या तुम्हें दुःख नहीं होता?'
सब एक साथ बोली-'हां, स्वामी! आप ठीक कह रहे हैं। दुःख तो इतना होता कि आकाश पाताल एक हो जाते।'
'बहिनो! इसीलिए मैं कह रहा हूं कि यह धन का लोभ, यह भोग का भाव, यह आकांक्षा-इन सबको छोड़ो और उस मार्ग को चुनो, जहां कोई लेने वाला नहीं है, कोई चोरी करने वाला नहीं है। जो मुनि और संत बन जाता है, उसे कोई चोरी-डकैती का भय नहीं होता। उसके प्रवास-स्थल के दरवाजे सदा खुले रहते हैं।'
सता रा खुला है बारणा। कब ही ल्यो कोई निहार, संतां रा खुला है बारणा।। .. प्रभव चोर इन बातों को सुन रहा है। जम्बूकुमार भी प्रभव चोर को सुनाने के लिए अपनी पत्नियों को कह रहा है। पत्नियां तो समझ चुकी हैं। उनके मन में कोई वैमत्य नहीं रहा। समझाना है प्रभव को। किन्तु कभी-कभी लक्षित व्यक्ति को सीधी बात नहीं कही जाती। दूसरे को कहा जाता है और सामने वाला समझ जाता है। प्रभव ने पूरी गंभीरता से सुना, उसने सोचा-जम्बूकुमार कोरा विद्याधर नहीं है, तत्त्ववेत्ता भी है। इतनी गहरी तत्त्व की बात मैंने आज तक किसी से नहीं सुनी।
प्रभव का दिल कुछ कंपित हो गया, सोचा-मैं कौन था और मैं कहां आ गया? राजकुमार था और चोर बन गया? अब उसे थोड़ा अपनेपन का भान हुआ। वह अपना स्वत्व भूल गया था, आज उसको यह भान हुआ है कि मैं कौन हूं? कोई-कोई ऐसा व्यक्ति मिलता है जो भान करा देता है और भान हो भी जाता है।
___ एक सिंह का बच्चा जन्मा। जन्म देते ही मां मर गई। बच्चा छोटा था। एक चरवाहा भेड़ें चरा रहा था। उसने देखा, सिंह का शिशु बहुत सुंदर लग रहा है। उसे अपनी गोदी में उठा लिया। उसे भेड़ों के साथ रखने लगा। अब वह सिंह शिशु सारी क्रियाएं भेड़ की तरह करने लग गया। वैसे ही खाना, वैसे ही चरना, वैसे ही बोलना। भेड़ों के बीच में रहा और वही सीख गया। ___एक दिन जंगल में भेड़ें चर रही थीं। वह सिंह शिशु भी उनके साथ था। उस समय अचानक कोई शेर आ गया। शेर आते ही जोर से दहाड़ा, उसने हत्थल उठाई, पूरा जंगल भयाक्रांत हो गया। भयभीत भेड़ें इधर-उधर छिपने का प्रयत्न करने लगीं। सिंह शिशु ने सोचा-अरे! यह तो मैं भी कर सकता हूं। वह भी दहाड़ा, उसने भी हत्थल उठाई।
परम विजय की
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