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PRASilepintenment
'स्वामी! हमें आपकी यह प्रतिज्ञा ज्ञात थी-मैं विवाह करूंगा किन्तु दूसरे ही दिन साधू बन जाऊंगा। पर हमने सोचा-ये सब निकम्मी बातें हैं, यह एक दिखावा है, मुखौटा है। केवल दिखाने के लिए बात कर रहे हैं, होना-जाना कुछ नहीं है।'
'स्वामी! हमने सोचा था कि हमारा रूप कितना सुंदर है। हम अप्सराएं जैसी लग रही हैं। हम केवल रूपसी नहीं हैं, गुण संपन्न भी हैं। हम रोहिड़ा के फूल जैसी केवल रूपवती नहीं हैं।' राजस्थानी का बहुत सुन्दर पद्य है
ना चंपा ना केतकी, भ्रमर देख मत भूल।
रूप रुड़ो गुण बायरो रोहिड़ा रो फूल।। भ्रमर को संबोधित करते हुए कवि ने कहा-भ्रमर! रोहिड़े के वृक्ष को सुंदर देखकर तुम खुश मत होओ। यह न चंपा है, न केतकी है। यह रोहिड़े का वृक्ष है। इसके फूल सुंदर हैं पर गुणविहीन हैं।
रोहिड़ा का फूल देखने में बड़ा अच्छा लगता है पर उसमें कोई गुण नहीं होता। 'स्वामी! हमें अपने रूप पर अभिमान था, अपनी बुद्धि और अक्ल पर भरोसा था। रूप, बुद्धिमत्ता और मृदुभाषिता-ये तीनों गुण हमें प्राप्त हैं।'
एक व्यक्ति ने कहा-'भाई! मुझे विवाह करना है पर मुझे ऐसी स्त्री चाहिए, जो रूपसी भी हो, बुद्धिमती भी हो और मृदुभाषिणी भी हो।' ___ उसने प्रतिप्रश्न किया'इन तीनों का भार तुम कैसे सहन कर सकोगे? महंगाई के युग में एक को निभाना भी बड़ा मुश्किल है।'
वह बोला-'मैं तीन नहीं, एक में ही ये तीनों गुण चाहता हूं।'
'मित्र! एक तो ऐसी कहां मिलेगी? जो रूपसी है, वह बुद्धिमती नहीं है। जो बुद्धिमती है, वह मृदुभाषिणी नहीं है इसलिए तुम इस महंगाई के जमाने में तीन को लाने की बात मत सोचो।' ___'स्वामी! हमने सोचा-अकेला जम्बूकुमार क्या करेगा? हम तो आठ हैं, वह अकेला है। क्या करेगा वह? अहं भी प्रबल था हम सबका। __ अहंकार में आदमी अपनी औकात भी भूल जाता है। एक हाथी जा रहा था। दो चींटियां ऊपर चढ़ गईं। एक चींटी बोली-बहन! आज तो मन होता है कि हम हाथी से लड़ें।'
दुसरी बोली-'कितनी मूर्खता की बात करती हो। लड़ाई बराबरी वाले से होनी चाहिए। अगर दो हाथी होते तो लड़ने में मजा आता। हम दो हैं और वह एक। वह अकेला क्या कर पायेगा?'
'स्वामी! हमें भी यह अहं था कि हम अपने रूप बल, बुद्धि बल और वाक् कौशल से प्रियतम के मानस को बदल देंगी किन्तु हमारा अहं मिथ्या प्रमाणित हुआ। हम तो आपको नहीं समझा सकीं किन्तु आपने हमें समझा दिया।'
'स्वामी! आपका भाग्य भी प्रबल है और वैराग्य भी प्रबल है। बिना वैराग्य के ऐसा होता नहीं है। कुसुंभा दूसरों को रंगता है पर कब रंगता है? जब वह पहले गलता है तब दूसरों को रंगता है। बिना गले
गाथा
परम विजय की
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