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जम्बूकुमार ने दरवाजा खोल दिया। दरवाजा खुलते ही देखा-एक विशालकाय डील-डौल का लंबा-चौड़ा और सुंदर युवक खड़ा है। उसने सामने आकर नमस्कार किया, नमस्कार कर बोला-'कुमार! आप बड़े शक्तिशाली हैं। आपकी महिमा अपरंपार है। आप अवस्था में छोटे हैं। अभी पूरे युवक भी नहीं हैं, किशोर ही हैं। आपका यह दिव्य ललाट, आभामंडल बता रहा है कि आप बहुत शक्तिशाली हैं। आप मुझ पर कृपा करो।'
जम्बूकुमार ने कहा-'बोलो, क्या चाहते हो?' 'नहीं, कृपा करो' यह कहते हुए आगन्तुक एकदम भावविह्वल हो गया। 'क्या कृपा करें?' 'कुमार! क्या पहले मैं अपना परिचय दे दूं?'
'हां, अवश्य जानना चाहेंगे हम आपका परिचय'-जम्बूकुमार ने स्वस्थ एवं मृदु स्वर में कहा।
'कुमार! प्रभव मेरा नाम है। मैं चोर पल्ली का स्वामी हूं।' वातायन की ओर इशारा करते हुए प्रभव चोर ने कहा-'कुमार! आप थोड़ा सा बाहर झांकें। दरवाजे से बाहर कौन खड़े हैं? आपके घर में दो-चार नहीं, पांच सौ चोर खड़े हैं। ये सब मेरे अधीन हैं। मैं इन सबका सरदार हूं।' _ 'कुमार! आपने सुना ही होगा कि मेरे नाम से बड़े-बड़े राजा कांपते हैं, बड़ी-बड़ी सेनाएं कांपती हैं। किसी की हिम्मत नहीं होती मेरे सामने आने की। ने इतना शक्तिशाली हूं मैं।'
'कुमार! मेरे पास दो विद्याएं हैं। एक है अवस्वापिनी विद्या। मैं जहां चोरी करने जाता हूं, वहां पहले अवस्वापिनी विद्या का प्रयोग करता हूं। इस विद्या का प्रयोग करते ही सब घोर निद्रा में चले जाते हैं। मैं सबको सुला देता हूं, कोई जाग नहीं सकता।' __ कुमार! जब सब सो जाते हैं, घोर नींद में चले जाते हैं, खर्राटे भरने लग जाते हैं तब मैं तालोद्घाटिनी विद्या का प्रयोग करता हूं। इस विद्या का प्रयोग करते ही ताले टूट कर नीचे गिर जाते हैं। तालों को खोलना ही नहीं पड़ता। किसी हथियार का प्रयोग करने की जरूरत नहीं होती। मैं विद्या का प्रयोग करता हं और सारे ताले टूट जाते हैं। इतना करने के बाद कोई चिंता नहीं रहती। निर्बाध रूप से हमारे साथी काम करते हैं।'
'कुमार! तुम राजगृह के प्रसिद्ध श्रेष्ठी ऋषभदत्त के पुत्र हो। मैं तुम्हें जानता हूं पर तुम मेरा परिचय नहीं जानते। आज तुम मेरा परिचय भी जान लो।'
'कुमार! मैं कोई सामान्य घर का व्यक्ति नहीं हूं। मैं विन्ध्याचल के परिपार्श्व का निवासी हूं। महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश की सीमा पर विन्ध्याचल पर्वत है। वहां दक्षिण प्रदेश शुरू हो जाता है।' __पूज्य गुरुदेव ने जब दक्षिण की यात्रा की, हम भी विन्ध्याचल गए। विन्ध्याचल को पार कर दक्षिण भारत में प्रवेश हुआ।
गाथा परम विजय की
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