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मेवाड़ का प्रसंग है। आमेट, राजसमन्द, नाथद्वारा यह मार्बल की पट्टी है। यहां मार्बल का अच्छा व्यवसाय है। उसी क्षेत्र के एक भाई ने बताया-'महाराज! पहले कोई विवाह शादी करते तो पूछते-भाई! , सम्पन्न घर का लड़का बताओ। क्या मार्बल की पट्टी वाला कोई लड़का ध्यान में है? क्योंकि वहां कमाई अच्छी होती है। लड़की को वहां दिया जाए, जहां धन है, कमाई अच्छी है। कमाई के साथ शराब का प्रचलन हआ। जहां शराब आती है वहां अपराध आने लग जाते हैं। एक शराब की लत के साथ अपराध
और बुराइयों के लिए दरवाजा खुल जाता है। भाई ने कहा-अब यह देखा जाता है कि लड़का संस्कारी है या नहीं? उसका खान-पान, रहन-सहन और चरित्र कैसा है? यदि खान-पान और चरित्र अच्छा नहीं होता है तो व्यक्ति बुराइयों का पुतला बन जाता है।'
भिक्षो! मासनिषेवणं प्रकुरुषे किं तेन मद्यं बिना, मद्यं चापि तव प्रियं प्रियमहो वारांगनाभिः सह। वेश्या द्रव्यरुचिः कुतस्तव धनं चौर्येण द्यूतेन वा,
द्यूतं चौर्यमपि प्रियमहो! नष्टस्य कान्या गतिः।। एक बहुत मार्मिक कथा है। एक भिक्षुक मांस खा रहा था। एक विद्वान् कवि ने देखा, उसने पूछाभिक्षो! मासनिषेवणं प्रकुरुषे? 'अरे! संन्यासी बने हो और मांस खा रहे हो?'
'किं तेन मद्यं बिना-मैं कोरा मांस नहीं खाता हूं। उसके साथ शराब भी पीता हूं।' 'मद्यं चापि तव प्रियम्-मांस के साथ शराब भी पीते हो?' 'हां, शराब भी अकेला नहीं पीता।' 'किसके साथ पीते हो?' 'वारांगनाभिः सह वेश्या के साथ पीता हूं।' 'अरे! वेश्यागमन भी करता है? 'हां!'
'वेश्या द्रव्यरुचिः-वेश्या को तो धन चाहिए। तुम भिक्षु हो। कुतस्तव धनम् तुम्हारे पास धन आयेगा कहां से?'
'चौर्येण द्यूतेन वा-धन के लिए चोरी करता हूं, जुआ खेलता हूं।' 'अरे! इस वेश में जुआ भी खेलता है, चोरी भी करता है, यह भी तुझे प्रिय है?'
'नष्टस्य कान्या गतिः-जो एक बार नष्ट हो गया, फिर उसकी और गति क्या है? सब करना ही पड़ेगा।' ___ एक बुराई जीवन में आती है, एक अपराध जीवन में आता है तो सारी स्थितियां बदल जाती हैं। एक बहन ने शिकायत की-महाराज! मेरे पति तम्बाकू बहुत खाते हैं।'
मैंने उससे कहा-'तंबाकू छोड़ दो।' 'छोड़ तो नहीं सकता।'
गाथा परम विजय की
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