________________
गाथा परम विजय की
"प्रिये! कौन-सी दो कलाएं?'-जम्बूकुमार ने साश्चर्य पूछा।
'स्वामी! स्वयं की तो उपज नहीं और दूसरों की बात मानना नहीं ये दो कलाएं और पढ़ ली हैं। इस प्रकार आप ७४ कलाओं में निपुण बन गये हैं।'
'प्रिये! क्या कहना चाहती हो तुम?'
'स्वामी! हम सब इतना समझा रही हैं पर आप किसी की बात नहीं मान रहे हैं। यह अहंकार अच्छा नहीं है। दूसरे की सलाह भी माननी चाहिए। दूसरे की बात पर ध्यान देना भी जरूरी है। स्वामी! यदि आप हमारी बात नहीं मानोगे तो उस सिंचाना पक्षी की तरह पछताओगे।' ___जम्बूकुमार शांत स्वर में बोला-रूपश्री! बहुत कड़वी बात बोल रही हो पर कोई बात नहीं है। कम से कम यह तो बता दो कि वह सिंचाना पक्षी कैसे पछताया? कैसे दुःखी बना?'
रूपश्री जम्बूकुमार की शांत वृत्ति को देख स्तब्ध रह गई। मन में कुछ श्रद्धा का भाव भी पैदा हो गया। उसने सोचा कितना अनावेश है? इतनी कटु बात कही फिर भी मुख पर क्षोभ और क्रोध की रेखा नहीं। विलक्षण है शांति। इन्हें उत्तेजना भी नहीं आती।
आजकल के कुछ पति तो ऐसे हैं कि पत्नी अगर थोड़ी-सी अप्रिय बात भी कह दे तो पिटाई करनी शुरू कर देते हैं। आवेश बहत है। आज दसरी समस्या है नशे की। नशा बहत करते हैं। जो जर्दा, पान पराग, शराब आदि का नशा करेगा उसमें आवेश बढ़ जायेगा, उत्तेजना बढ़ जायेगी, हाथ जल्दी उठेगा, पिटाई करना शुरू कर देगा। अपना घर भले ही बिगड़ जाये, अशांत हो जाए पर नशे में उसे कोई भान नहीं रहता। यह नशे का प्रभाव है। नशे का काम ही है चेतना को बिगाड़ देना, चेतना में विकार पैदा करना। किन्तु इतनी कड़वी बात कहने पर भी बिल्कुल शांत प्रसन्न रहना सचमुच अलौकिक घटना है। ____ रूपश्री बोली-'स्वामी! मैं जो कह रही हैं, आप बुरा मत मानना। मैं कोई शत्रु बनकर नहीं कह रही हूं। मैं आपकी हितचिंतक बनकर कह रही हूं।'
रूपश्री कड़वाहट के साथ मिठास भी घोल रही है-'स्वामी! जब मैं आपके शरीर को देखती हूं तो लगता है कि यह सुकुमार शरीर कैसे साधुपन को निभायेगा? कैसे भूख को सहेगा? यह गर्मी की रात, जो ज्वाला सी बरसाती है, प्यास को कैसे सहेगा? इस आग उगलती लू को कैसे सहेगा? इस वैभार पर्वत की तलहटी में चलने वाली हवाएं, जो पांच पर्वतों के बीच से चलती हैं, कैसे सहन करेगा? कैसे पदयात्रा करेगा? पैर में कांटे चुभंगे तो उनको कैसे सहेगा? इस सुकुमार शरीर से आप साधुपन पालेंगे कैसे? कहीं यह न हो कि मेघकुमार की तरह एक रात में ही घबरा जाओ।' ___ 'स्वामी! हमारा क्या स्वार्थ है? हम तो आपकी सुकुमारता को देखकर अच्छी सलाह दे रही हैं। किन्तु यह निश्चित है कि आप हमारी बात नहीं मानोगे तो सिंचाना पक्षी जैसे दुःखी बनोगे।'
"प्रिये! सिंचाना पक्षी ने क्या मूर्खता की, जिससे उसे पश्चात्ताप करना पड़ा?' ___ 'स्वामी! सघन भयावह जंगल में एक पेड़ पर एक पक्षी रहता था। उसका नाम था सिंचाना। संस्कृत में उसका शब्द है सेचनक। जिस वृक्ष पर वह रहता था, उसकी छांह गहरी थी। एक बाघ प्रतिदिन वहां
२५३