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गाथा परम विजय की
प्रत्येक ज्ञान और आचरण की पृष्ठभूमि में दर्शन होता है, दृष्टिकोण होता है। जैसा दर्शन वैसा ज्ञान, जैसा दर्शन वैसा आचार और व्यवहार। सब कुछ दर्शन पर निर्भर है, दृष्टिकोण पर निर्भर है इसलिए सम्यग् ज्ञान, सम्यग् चारित्र बाद में है, सबसे पहले है सम्यग् दर्शन। दृष्टिकोण दो भागों में बंट जाता है-एकान्तवादी दृष्टिकोण और अनेकांत का दृष्टिकोण। एकान्तवादी दृष्टिकोण वाला व्यक्ति जिस बात को पकड़ लेता है, उसे छोड़ता नहीं है। ___ आचार्य भिक्षु ने लिखा-'पीपल बांध मूर्ख ज्यू ताणै।' इस संदर्भ में एक दृष्टांत प्रस्तुत किया। एक बहू नई-नई आई थी। वह कुछ भोली भी थी। सास ने कहा-'बहू! आज पीपल की पूजा करनी है। पीपल ले आओ।' बहू मोटा रस्सा लेकर गई। पीपल का जो तना था, उसे रस्से से बांध दिया और खींचना शुरू किया, खूब खींचा पर पीपल सरका ही नहीं। बहु बोली-ऐसा जिद्दी व्यक्ति मैंने नहीं देखा। आखिर खींचते-खींचते बहू के हाथ में खून आने लग गया पर पीपल एक इंच भी नहीं सरका। एक समझदार आदमी उधर से निकला, उसने देखा यह क्या नाटक हो रहा है। उसने पूछा-'बहन! क्या कर रही हो?' ___ 'भाई! क्या बताऊं? नई-नई बहू बनकर आई हूं। आज ही तो सास ने कोई काम सौंपा पर ऐसे जिद्दी से पल्ला पड़ गया है कि यह चलता ही नहीं है।' उसने प्यार से समझाते हुए कहा–'भोली बहन! पीपल ऐसे नहीं चलता। मैं पीपल तुमको दे दूं तो?' ___ बहू ने कृतज्ञ स्वर में कहा–'आपकी बहुत कृपा होगी।' वह व्यक्ति ऊपर चढ़ा, एक टहनी तोड़ी और उसे बहू के हाथ में थमा दी। उसने पीपल की वह टहनी सास को सौंप दी, काम बन गया। ___ आचार्य भिक्षु ने लिखा-'एकांतवादी दृष्टिकोण वाला व्यक्ति आग्रही होता है। वह पीपल को रस्से से बांधकर कहता है कि तुम चलो पर कभी ऐसा होता नहीं है। एकांतवादी दृष्टिकोण में संघर्ष, आग्रह, लड़ाई-झगड़े सब होते हैं। वस्तुतः ज्यादा संघर्ष एकान्तवादी दृष्टिकोण के कारण ही होते हैं। हर व्यक्ति
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