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खोजता है जहां उसकी अपनी बुद्धि लगी हुई है। वह दूसरों की बात सुनना पसंद नहीं करता। जो व्यक्ति अनेकांत दृष्टि वाला होता है, अनाग्रही होता है वह जहां युक्ति होती है वहां जाता है।'
आग्रही बत निनीषति युक्तिः, यत्र तत्र मतिरस्य निविष्टा।
पक्षपातरहितस्य तु युक्तिः , यत्र तत्र मतिरेति निवेषम्।। 'स्वामी! मन एक बछड़ा है। युक्ति, न्याय, तर्क, हेतु एक गाय है। यह मन रूपी बछड़ा युक्ति रूपी गाय के पीछे चलता है किन्तु तुच्छाग्रह मनःकपि-जो तुच्छ आग्रह वाला मन रूपी बंदर है, वह गाय के पीछे नहीं चलता, वह गाय की पूंछ को पकड़कर अपनी ओर खींचता है।'
मनोवत्सो युक्तिगवी, मध्यस्थस्यानुधावति।
तामाकर्षति पुच्छेन, तुच्छाग्रहमनःकपि।। 'स्वामी! आज आपका मन भी बंदर बन गया, चंचल बन गया इसलिए आप न्याय पर ध्यान नहीं दे रहे हैं, युक्ति पर ध्यान नहीं दे रहे हैं, सचाई पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। आप दूसरों की सचाई को झुठलाने का प्रयत्न कर रहे हैं और अपनी बात को सच साबित करना चाहते हैं।' ___ जयंतश्री ने अपना पक्ष बड़ी प्रबलता के साथ रखा और इतनी युक्ति के साथ रखा कि यदि कमजोर संकल्प वाला होता तो तत्काल प्रभावित हो जाता। किन्तु जम्बूकुमार भावी केवली था। जिस व्यक्ति को कुछ बनना होता है, उसमें पहले से उसकी परिणति शुरू हो जाती है। आज के विज्ञान का सिद्धांत है जो बीमारी स्थल शरीर में आती है, सूक्ष्म शरीर में वह तीन महीना पहले पैदा हो जाती है। वह भीतर ही भीतर पनपती है और तीन महीने बाद इस स्थूल शरीर में प्रकट होती है। स्थूल शरीर में बीमारी होती नहीं है, वहां तो प्रकट होती है। जब रोग स्थल शरीर के प्रकट होता है तब आदमी सोचता है कि रोगी बन गया। विज्ञान कहता है तुम रोगी तो पहले ही बने हुए थे। अगर हम सूक्ष्म सचाई में जाएं, निश्चय नय में जाएं तो जैसा होना होता है, उसका प्रारंभ पहले हो जाता है। उसका अंश पहले ही सामने आ जाता है। जम्बूकुमार को जो होना है उसकी आत्मा में उसका परिणमन का चक्र चल रहा है इसलिए जम्बूकुमार पर जयंतश्री की बात का कोई असर नहीं हुआ। ___ जम्बूकुमार बोला-जयंतश्री! सबने अपनी-अपनी बात कह दी, तुमने भी अपनी बात कह दी। मैंने सबकी बात सुन ली। तुम्हारी चतुराई, तुम्हारी बुद्धि, तुम्हारी मनीषा, तुम्हारी समझदारी, तुम्हारा वक्तृत्व-सब कुछ अच्छा है पर वह मेरे भीतर प्रवेश नहीं कर रहा है। बस, ऐसा कोई पंजर बन गया है कि भीतर जा ही नहीं रहा है।'
जयंतश्री बोली-'स्वामी! यही तो मैं कह रही हूं कि आप एकांतवादी हो गए हैं, आपके भीतर दूसरी बात प्रवेश कैसे करेगी? एकांतवादी के भीतर दूसरा सच प्रवेश नहीं करता।' ___ 'स्वामी! आपने इस घटना को सुना होगा-भगवान महावीर की सभा में सब लोग श्रद्धाभाव से जाते थे लेकिन एक व्यक्ति ऐसा था, जो महावीर को बाहर से देखते ही दौड़ता, मानो कोई सिंह आ गया हो। वह महावीर के सामने ही नहीं देख सकता था।
स्वामी! ऐसे लोग होते हैं, जिनमें अच्छाई का कहीं प्रवेश नहीं होता।'
गाथा परम विजय की
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