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गाथा परम विजय की
जयंतश्री कहानी कहना नहीं चाहती थी पर कहानी की भूमिका तो बन ही गई। जम्बूकुमार बोला-'प्रिये! पहले कहानी सुना दो फिर कोई बात करेंगे।'
'स्वामी! श्रीपुर नाम का नगर था। वहां सागर नाम का राजा था। वह राजा कथाप्रिय था। कहानी सुनना बहुत पसंद करता था। कहानी ऐसा तत्त्व है जिसे बच्चे भी सुनना चाहते हैं और बड़े-बूढ़े भी सुनना पसंद करते हैं। अनपढ़ ही नहीं, पढ़े-लिखे लोग भी कहानी सुनना पसंद करते हैं। कहानी सबको प्रिय है क्योंकि कहानी में सरसता के साथ बहुत मर्म की बात कह दी जाती है। कांतातुल्यतयोपदेशाच्च जैसे प्रिय पत्नी की बात सीधी गले उतर जाती है, वैसे ही कहानी की बात एकदम बिना अटके गले उतर जाती है। न ज्यादा सोचना पड़ता है, न चिंतन-मनन करना पड़ता है, न निदिध्यासन करना पड़ता है। स्वामी! बूढ़े आदमी के लिए गरम-गरम हलवा बनाया जाता है। वृद्ध के दांत नहीं होते। उसे चबाने में कठिनाई होती है। जैसे वह गरम-गरम हलवा सीधा गले उतर जाता है वैसे ही कहानी सीधे गले उतर जाती है।'
'स्वामी! कथाप्रिय राजा ने एक व्यवस्था कर दी। उस व्यवस्था के अनुसार प्रतिदिन एक विद्वान ब्राह्मण आता और कहानी सुनाता। प्रतिदिन कथा सुनकर राजा बड़ा प्रसन्न रहता। एक दिन जिस ब्राह्मण की बारी आई, वह ठोठ भट्टारक था। उसने सोचा-बड़ी मुसीबत हो गई। राजा को कहानी सुनाना है और मैं कुछ जानता नहीं हूं। घर में बहुत उदास बैठा था। लड़की बोली-'पिताजी! आज आप उदास क्यों हैं?'
'बेटी! आज एक समस्या, उलझन आ गई। बड़ी चिन्ता हो रही है।' 'पिताश्री! क्या उलझन है?'
'बेटी! आज हमारी बारी है कहानी सुनाने की। मैं कहानी सुनाना जानता नहीं हूं। राजा के पास जाना है, कहानी सुनाना है, क्या करूंगा मैं?'
उसने कहा-'आप चिंता मत करो, मैं चली जाऊंगी।' 'बेटी! बहुत अच्छी बात है।' राजा को सूचना मिली-'आज ब्राह्मण पुत्री कथा सुनाएगी।' राजा ने पूछा-'बहन! आज तुम कथा सुनाने आई हो?' 'हां, राजन्! आज पिताजी आने में असमर्थ हैं इसलिए उनके स्थान पर मैं आ गई।' राजा ने कहा-'अच्छी बात है। तुम कहानी कहो।' 'राजन्! मैं आपको कहानी नहीं, अपने जीवन की घटना सुना रही हूं।'
'घटना-प्रसंग अधिक जीवन्त होता है। वह भोगा हुआ सच होता है। जीवन का अनुभूत प्रसंग अधिक उत्प्रेरक होता है।' _ 'हां, राजन्! मेरे जीवन का वह घटना-प्रसंग विलक्षण है।'
'हम उसे सुनना चाहेंगे।'
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