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अपनी-अपनी बात को तानता है और यह अपनी बात का आग्रह संघर्ष को जन्म देता है। जो एकांतवादी होता है वह इस भाषा में सोचता है
मैं कहता हूं सत्य वही है।
तू जो कहता सत्य नहीं है। 'स्वामी! आप भी इसी भाषा में सोचते हैं मैं कह रहा हूं वही सत्य है। मैं ही कल्याण करूंगा, मैं ही उद्धार करूंगा, सब कुछ मैं करूंगा, तुम कुछ नहीं कर पाओगी। यह एकांतवाद आदेय नहीं है।'-जयंतश्री ने इस भूमिका के साथ अपनी बात प्रारंभ की-'प्रियतम! आप एकांतवादी हैं। आपका दृष्टिकोण भी एकांतवादी है। यदि आप एकांतवादी नहीं होते तो इतना आग्रह नहीं करते। आप महावीर वाणी की दुहाई देते हैं पर मुझे ऐसा लगता है कि महावीर वाणी के हृदय का कोई स्पर्श ही नहीं हुआ है। जो महावीर वाणी की दहाई देते हैं, महावीर की बात को समझते हैं वे अनेकांतवादी होते हैं, वे इतने आग्रही नहीं बनते पर आप तो पूरे एकांतवादी हैं, कहीं भी अनेकांत का स्पर्श नहीं है।
जम्बकुमार बोले-'जयंतश्री! मैं एकांतवादी कैसे हुआ? इस बात को जरा समझाओ तो सही।'
'स्वामी! यह एकदम स्पष्ट है। मेरी सात बहनों ने जो कथा सुनाई वे सब झूठी और आपने जो सुनाई वह सच्ची। इससे अधिक एकांतवाद क्या होगा? क्या यह एकांतवाद का उदाहरण नहीं है कि हम जो कह रही हैं वह सब झूठ और आप जो कह रहे हैं वह सब सच।' एक एकांतवादी व्यक्ति से पूछा गया-पृथ्वी का मध्य कहां है? उस व्यक्ति ने एक स्थान पर लाठी
रोप दी और कहा-यहीं है।
पूछा गया इसका प्रमाण क्या है? उसने कहा-नाप लो, यह एकदम बीचोबीच है।
'स्वामी! एकांतवाद में यही तो होता है कि व्यक्ति दूसरे की बात को सुनता भी नहीं है, समझता भी नहीं है। केवल अपनी बात पर ही अड़ा रहता है।' ___'पतिदेव! मैं कोई नई कहानी कहने के लिए उत्सुक नहीं हूं। मैं तो इस सचाई को आपके सामने रखना चाहती हूं कि यह एकांतवाद आपको कहां
ले जायेगा? हम जो कुछ कहती हैं, वह सारा गलत, झूठ और मिथ्या है। सारी सचाई की पोटली आपने बांध ली। आपके पास ही सारा सत्य आ गया। क्या यह सही है? जरा चिंतन करो। स्वामी! मुझे लगता है-आप भी सच्ची
कहानी और झूठी कहानी का निर्णय नहीं कर ___सकते, जैसे वह सागर राजा नहीं कर सका था।'
गाथा परम विजय की
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