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राजस्थानी कहावत है—'आप डूबंतो बाणियो, ले डूब्यो जजमान' - वणिक स्वयं डूब रहा है, साथ में जजमान को भी ले डूबेगा। आप स्वयं खतरे में हैं और हमें भी खतरे में डालना चाहते हैं, यह अच्छा नहीं है इसलिए कृपा करें, आप अभी जंगल में चले जाएं तो अच्छा रहे।'
किसी ने स्थान नहीं दिया, न नित्यमित्र ने स्थान दिया और न पर्वमित्र ने स्थान दिया। सुबुद्धि ने सोचा-कहां जाऊं? एक वे सेठजी हैं, जो यदा कदा नमस्कार कर लेते हैं, दो शब्द बोल देते हैं क्या उनके पास जाऊं? और तो कोई विकल्प भी नहीं है मेरे पास। आखिर वह उनके घर गया। सेठ ने प्रधानमंत्री का बड़ा स्वागत किया। आइये, विराजिये - आप कैसे पधारे हैं। सुबुद्धि ने सारी बात बताई।
सेठ ने कहा-'मंत्रीवर! चिंता की क्या बात है ? बहुत बड़ा है मेरा घर । आप कहीं भी रह जाएं। किसी को कुछ पता नहीं चलेगा। मैं यह भी प्रयत्न करूंगा कि राजा प्रसन्न हो जाए और आपको फिर उसी मंत्री पद पर ससम्मान स्थापित करे । '
मंत्री बड़ा संतुष्ट हुआ। वह सेठ के घर में रह गया। कुछ दिन बाद स्थिति बदली। राजा का कोप शांत हुआ। उसने कहा—'मंत्री की खोज करो। मंत्री कहां है? पता लगाओ । ' अधिकारी गए, पता लगाया । सेठ ने राजा के मानस को बदलने का प्रयत्न किया। राजा ने पुनः उसे मंत्री पद पर ससम्मान प्रतिष्ठित कर दिया।
जम्बूकुमार बोला-'रूपश्री! मैं नित्यमित्र और पर्वमित्र जैसे कच्चे मित्र बनाना नहीं चाहता । मेरा पक्का मित्र है जिनवाणी। मेरे पक्के मित्र हैं सुधर्मा स्वामी । वे सेठ के बराबर हैं। तुम लोग मेरे कच्चे मित्र हो। मैं कच्चे मित्र बनाना नहीं चाहता । तुम चाहे इसे अहंकार समझो या और कुछ।'
जम्बूकुमार की इस स्पष्टोक्ति ने रूपश्री को निरुत्तर जैसा कर दिया। जम्बूकुमार ने मर्मस्पर्शी शब्दों में कहा—'प्रिये! मित्र उसको बनाओ, जो सदा साथ दे ।'
नमि राजर्षि ने कहा था-घर वह बनाओ, जो सदा रहे। ऐसा घर मत बनाओ कि या तो घर छूट जाए या घर से तुम छूट जाओ। 'गेहं तु सासयं कुज्जा' - शाश्वत घर बनाओ।
जम्बूकुमार ने ऐसा शाश्वत का उपदेश और विवेक दिया - कच्चा मित्र मत बनाओ, पक्का मित्र बनाओ। आपात - भद्र नहीं, परिणाम - भद्र बनो ।
रूपश्री जम्बूकुमार के वक्तव्य को सुन चिन्तन में लीन हो गई । चिन्तन का निष्कर्ष भी यही रहा - जम्बूकुमार जो कुछ कह रहा है, वह ठीक है। हमारी बात सही नहीं है। सचाई की उपेक्षा मैं क्यों करूं? मुझे भी सचाई के साथ चलना है, मुझे भी कच्चा मित्र नहीं बनाना है । मुझे भी परिणाम-भद्र होना है। जम्बूकुमार का पक्ष प्रबल होता जा रहा है, बढ़ता जा रहा है। कन्याओं का पक्ष कमजोर हो गया। अकेली जयंतश्री शेष रह गई।
सातों कन्याओं के मन में यह प्रश्न उभर रहा है-जिस कार्य की सिद्धि में हम सातों बहनें असफल रही हैं, क्या वह कार्य जयंतश्री कर सकेगी ?
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गाथा
परम विजय की
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