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बात मत सोचो। इसे सोया ही रहने दो। गुफा में सिंह सोया पड़ा है, जान-बूझकर उसको क्यों जगाती हो? उसको जगाओ तो खतरा है।'
बुद्धि से अहंकार ने कहा-'अनुभव को जगाने में बड़ा खतरा है। अनुभव के जागने पर न बुद्धि टिक पायेगी, न अहंकार रहेगा और जगत् का भी रूप बदल जायेगा, दृष्टि दूसरी हो जायेगी इसलिए ऐसा मत करो।'
जम्बूकुमार की अनुभव की चेतना जाग गई। दूसरी ओर अहंकार बोल रहा है और आरोप यह हो रहा है कि तुम बड़े अहंकारी हो।
जम्बूकुमार ने रूपश्री से कहा-तुम चाहे जो कहो, चाहे मुझ पर कुछ आरोपित करो पर मैं यह स्वीकार नहीं करता। मुझमें बिल्कुल भी अहंकार नहीं है। मैंने सचाई को समझा है और मैं अनुभव की भूमिका पर चला गया हूं।'
_ 'रूपश्री! जहां अनुभव है वहां न कोई शब्द काम देता, न कोई तर्क काम देता, न कोई पक्ष और प्रतिपक्ष होता, न कोई वाद-विवाद होता, न कोई संघर्ष होता। वहां केवल अपना साक्षात्कार है। मैं चैतन्य का अनुभव कर रहा हूं, साक्षात् कर रहा हूं वहां तर्क क्या काम देगा? सिद्धांत भी क्या काम देगा? यह तर्क और सिद्धांत की नहीं, केवल अनुभव की बात है। रूपश्री! मेरे मन में कोई अहंकार नहीं है।'
'स्वामी! आप कहते हैं कि अहंकार नहीं है फिर आप हमारी बात क्यों नहीं मानते? आप हमारी बात मानें तब हम मानेंगी कि आपमें अहंकार नहीं है। आप हमारी बात मानते नहीं हैं और कहते भी हैं कि अहंकार नहीं है, यह कैसे हो सकता है?' ____ जम्बूकुमार बोले-'रूपश्री! मैं बात नहीं मानता, उसका एक कारण है।'
'क्या कारण है?'
'कारण बहुत साफ है। मैं परिणाम में विश्वास करता हूं। एक है प्रवृत्ति और एक है परिणाम। बहुत सारी घटनाएं आपात-भद्र होती हैं किन्तु परिणाम में भद्र नहीं होती।' ___ 'रूपश्री! मैं आपात-भद्र में विश्वास नहीं करता, मैं परिणाम-भद्र में विश्वास करता हूं। जिसका परिणाम अच्छा होता है, उसमें विश्वास करता हूं।' ___ 'प्रिये! क्या तुम महावीर की इस वाणी को जानती
गाथा परम विजय की
जहा किंपाग फलाणं, परिणामो न सुंदरो। एवं भुत्ताण भोगाणं, परिणामो न सुंदरो।।