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किंपाक का फल बड़ा मीठा होता है, दीखने में बड़ा सुंदर होता है, रंग भी लाल-लाल होता है। किंपाक यानी कुचेले का फल। कुचेला भी जहर और उसका फल भी विषमय। यह जो किंपाक का फल है, है वह देखने और खाने में तो अच्छा लगता है पर परिणाम में अच्छा नहीं है। कोई व्यक्ति किंपाक फल को सुंदर मान कर, मीठा जानकर ललचायी आंखों से देखता है और अपने को रोक नहीं पाता, उसे सुस्वादु समझकर खा लेता है तो उसका परिणाम है 'मृत्यु'। भुत्ताण भोगाणं परिणामो न सुंदरो-इसी प्रकार भुक्त भोग का परिणाम भी सुंदर नहीं होता।'
_ 'प्रिये! मैं जो कर रहा हं वह अहंकार के कारण नहीं कर रहा हूं। मैं तुम्हारी बात को अस्वीकार कर रहा हूं। इसमें मेरा कोई अहंकार नहीं है किन्तु मेरी परिणाम की दृष्टि है। मैं आपात-भद्र नहीं, परिणाम-भद्र हूं। मैं प्रवृत्तिभद्र नहीं, किन्तु परिणाम-भद्र हूं। तुम समझती हो कि यह अहंकार है। यही तो चिन्तन में दूरी का कारण है।'
"प्रिये! जिसमें परिणाम-भद्रता की दृष्टि नहीं होती, वही इंद्रिय-विषयों में आसक्त होता है। यह विषयासक्ति अधःपतन का हेतु बनती है।'
'प्रिये! दूसरी बात यह है-मैं नित्यमित्र और पर्वमित्र बनाना नहीं चाहता। मैं हितैषी मित्र बनाना चाहता हूं, जो हर स्थिति में मेरे लिए संबल और आधार बने। पर्वमित्र और नित्यमित्र को महत्त्व देने वाले को सुबुद्धि प्रधान की तरह दुःखी होना पड़ता है।' रूपश्री बोली-'स्वामी! वह सुबुद्धि कौन था? और वह कैसे दुःखी हुआ?'
परम विजय की ___ 'प्रिये! एक राजा था जितशत्रु। उसका प्रधान था सुबुद्धि। वह बहुत बुद्धिमान था। उसने तीन मित्र
गाथा
बनाए।'
हर आदमी मित्र बनाना चाहता है। छोटे-छोटे बच्चे भी मित्र बनाते हैं। आठ वर्ष के बच्चे आते हैं। मैं पूछता हूं तुम्हारा नाम क्या है? उत्तर देता है मेरा नाम यह है। फिर पूछता हूं-यह कौन है? उसका उत्तर होता है यह मेरा मित्र है। __ वास्तव में मित्र सबके लिए जरूरी होता है क्योंकि मित्र वह होता है, जो अच्छी सलाह देता है, अच्छे रास्ते पर ले जाने वाला होता है। यह विवेक अवश्य जरूरी है कि मित्र किसको बनाया जाए? हर किसी को मित्र बना ले तो खतरा भी पैदा होता है।
सुबुद्धि ने तीन मित्र बनाए। एक मित्र बनाया अपनी स्त्री को। स्त्री भी मित्र हो सकती है, पुत्र भी मित्र हो सकता है। चाणक्य ने कहा
लालयेत् पंचवर्षाणि, दसवर्षाणि ताड़येत्।
प्राप्ते तु षोडशे वर्षे, पुत्रं मित्रवदाचरेत्।। पांच वर्ष तक पुत्र को लाड़-प्यार करो। पांच वर्ष के बाद ज्यादा लाड़ मत करो। दस वर्ष तक उस पर अंकुश रखो, उसे खुला मत छोड़ो। जागरूकता से ध्यान दो, समय-समय पर ताड़ना भी दो। थोड़ा-थोड़ा उलाहना भी दो, जिससे वह सहन कर सके। अगर पहले सहिष्णु नहीं बनाया, कच्चा रख दिया और फिर २६०