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'गुरुदेव! क्या समाधान किया है आपने?' 'वत्स! तुमने एक घड़ा शराब पी ली, क्या तुम्हें नशा आया?' 'गुरुदेव! नशा तो नहीं आया।' 'क्यों नहीं आया?'
'गुरुदेव! शराब की बूंट गले से नीचे उतरती तब नशा आता। मैंने तो मुंह में ली और कुल्ला करके थूक दिया। नशा कैसे आता?' __'वत्स! बहुत सारे लोग धर्म की बात सुनते हैं और कुल्ला करके थूक देते हैं। धर्म का पूंट गले से नीचे उतरता नहीं है। गले से नीचे उतरे बिना धर्म का नशा कैसे आयेगा? और कैसे वह स्वर्ग में जायेगा?'
रूपश्री ने जम्बूकुमार की ओर देखते हुए व्यंग्यात्मक स्वर में कहा-'स्वामी! ऐसा लगता है आप हमारी बात सुन रहे हैं और कुल्ला करके थूक रहे हैं। वह गले से नीचे नहीं उतर रही है। हमारी बात को थोड़ी नीचे तो उतरने दो।'
_ 'स्वामी! केवल सुनना पर्याप्त नहीं है। आप देखिए महावीर ने क्या कहा है? सवणे णाणे विण्णाणे पच्चक्खाणे य संजमे-पहली बात है सुनना। सुनने पर रुक जाए तो पूरा काम नहीं होता। दूसरी बात है णाणे-जो सुना है, उसको अच्छी तरह जानो। तीसरी बात है-'विण्णाणे' फिर विज्ञान करो, विवेक करो। यदि व्यक्ति पूरी बात सुनता नहीं है, सुनने के बाद उसको जानता नहीं है और जानने के बाद भी उसका विवेचन नहीं करता, विश्लेषण नहीं करता, चयन-विचयन नहीं करता तो कैसे सफल होगा? यह विवेचन करना चाहिए कि अमुक बात क्यों कही गई है?'
'स्वामी! ऐसा लग रहा है जैसे आप नींद में हमारी बात सुन रहे हैं। जो नींद में सुनता है, वह कैसा समझता है? यह मैं एक घटना के द्वारा बताऊं?'
'हां प्रिये! तुम्हारी कथाएं भी रसप्रद होती हैं।'
'स्वामी! एक बुढ़िया रोज धर्मकथा में जाती थी। वहां भीत का सहारा लेकर बैठ जाती। कभी नींद आ जाती और कभी थोड़ा बहुत सुन लेती। एक दिन वह धर्मकथा सुनकर घर आई। पुत्र-पौत्र सब पास में आए, पूछा-'दादी मां! आज धर्मकथा में क्या सुना?'
'अरे! आज तो धर्मकथा का मजा नहीं आया।' 'क्यों? क्या हुआ दादी मां!' 'बेटा! जो मुनिजी धर्मकथा कर रहे थे, उनके पेट में दर्द हो गया।'
'यह तुम्हें कैसे पता चला?' _ 'बेटे! उन्होंने एक घंटे की धर्मकथा में बीस बार कहा होगा-'ओय मां!' 'ओय मां'। यदि पेट में दर्द नहीं होता तो 'ओय मां' 'ओय मां' क्यों करते?'
_ 'स्वामी! नींद में कोई सुनता है तो कितना विपरीत अर्थ लगा लेता है। मुनिजी भगवती सूत्र पढ़ रहे थे। उसमें गौतम प्रश्न पूछते हैं और भगवान महावीर उत्तर देते हैं। गौतम पूछते हैं तब बोलते हैं-'एवं खुल
गाथा परम विजय की