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गाथा परम विजय की
__सामाजिक जीवन मोह की परिक्रमा कर रहा है। मोह का विशाल साम्राज्य है। जहां साम्राज्य है वहां सुरक्षा के लिए सेना भी जरूरी है। जहां सेना है वहां सेनापति भी होते हैं। मोह के साम्राज्य की सुरक्षा के लिए दो बड़े सेनापति हैं-अहंकार और ममकार। मैं और मेरा यह भाव बड़ा विचित्र होता है। आदमी अपने आपको दूसरों से अलग दिखाना चाहता है, बड़ा मानना चाहता है। पूजा, प्रतिष्ठा, श्लाघा और अपना बड़प्पन उसे बहुत प्रिय होता है। वह कहता तो यह है कि मुझे अमुक प्रिय है पर वास्तव में प्रशंसा, श्लाघा, प्रतिष्ठा जितनी प्रिय है उतना शायद कोई प्रिय नहीं है। दो प्रशंसा के शब्द कह दो, बस अपना बन जायेगा
और दो निंदा की बात कह दो, दूर हट जायेगा। व्यक्ति अपनी श्रेष्ठता दिखाना चाहता है। मेरी जाति, मेरा कुल, मेरा वंश, मेरा वैभव, मेरा ज्ञान और मेरी तपस्या-जाति मद, कुल मद, तप मद आदि अहंकार के अनेक प्रकार बनते हैं। ____ अहंकार तोड़ता है, दूसरों से जोड़ता नहीं है। व्यक्ति स्वयं को दूसरों से अलग कर लेता है और अलग हुए बिना प्रतिष्ठा का कोई स्वाद नहीं आता। दूसरों से अलग लगूं तब कुछ अतिरिक्तता का अनुभव होता है। यह प्रबल समस्या है।
एक कवि ने कल्पना की-बकरी मैं-मैं बोलती है। 'मैं-मैं' करते ही बकरी का सिर कट गया। बकरी के बालों से बुनकर तार बुनते हैं। तार बुनते समय मैं-मैं की नहीं, 'तू-तू' की आवाज आती है। 'तू-तू' करते ही उनका मोल बढ़ गया।
'मैं 'मैं करत ही बावली छाग कटायो शीश।
'तू' 'तू' बोलत बाल को मोल भयो दस बीस।। यह 'मैं'-अहं बड़ा खतरनाक होता है। इस अहं के कारण आदमी दूसरों को कुछ मानता नहीं है, विषमता पैदा करता है। दुनिया में जितनी विषमता है, उसका एक प्रमुख कारण है अहंकार।