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५ग्राह
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गाथा परम विजय की
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व्यक्ति और समाज। जहां व्यक्ति अकेला होता है वहां कोई कलह, संघर्ष और विवाद नहीं होता । अप्पसद्दे, अप्पझंझे, अप्पकलहे - न कोई तू-तू मैं-मैं करता, न कोई कलह और झगड़ा करता । किससे करे ! यदि कभी आवेश प्रबल हो तो भीत से भले ही कर ले। और कोई नहीं है तो व्यक्ति अकेला क्या करे। जहां दो मिलते हैं वहां समाज बनता है। वहां कलह और संघर्ष की संभावना होती है। समाज में कुछ निर्धारित मूल्य होते हैं, मानदंड होते हैं, कसौटियां होती हैं। वहां पूजा होती है, प्रतिष्ठा होती है।
नभसेना ने कहा- 'प्रियतम ! यह सर्वत्याग का निश्चय आपकी प्रतिष्ठा के लिए क्या अच्छा होगा ? क्या आपकी शोभा होगी? इतना दहेज आया, इतना भव्य पाणिग्रहण हुआ। क्या यह एक स्वांग सा रचा है? जैसे नाटक में स्वांग रचते हैं, वैसा ही यह स्वांग है। आप सब कुछ छोड़ रहे हैं, इससे शोभा नहीं होगी, कुल की प्रतिष्ठा नहीं बढ़ेगी। ऐसा काम करो, जिससे आपकी शोभा हो और कुल की प्रतिष्ठा बढ़े।'
सामाजिक दृष्टि से नभसेना का तर्क सशक्त था - काम वही करना चाहिए, जिससे प्रतिष्ठा और शोभा हो। सारे सामाजिक कार्य, आडंबर और प्रदर्शन इसी आधार पर चलते हैं कि इससे हमारी शोभा होगी । होना या न होना अलग बात है पर चिंतन वही रहता है कि शोभा होगी और प्रतिष्ठा बढ़ेगी।
जम्बूकुमार ने गहराई से चिंतन किया, चिंतन के पश्चात् बोला-' नभसेना ! तुमने अपना पक्ष बहुत प्रबलता से प्रस्तुत किया है। मेरे सामने चिंतन का प्रश्न रख दिया है कि आप वह काम करें, जिससे आपकी और कुल की शोभा हो, आपकी और कुल की प्रतिष्ठा हो। ऐसा कोई काम न करें, जिससे शोभा और प्रतिष्ठा घटे। मैं इस तर्क से सहमत हूं। तुम्हारे विचार को मैं काटना नहीं चाहता। हमें वैसा ही काम करना चाहिए, जिससे कुल की शोभा बढ़े किन्तु कुल की शोभा और प्रतिष्ठा कैसे बढ़े, तुम इस बात को नहीं जानती। मैं यह जानता हूं, मैंने इस सचाई को समझा है।'
'प्रिये! एक पथ होता है और एक उत्पथ। एक सीधा सपाट रास्ता है और एक उझड़ मार्ग | प्रिये! एक आदमी मार्ग पर चलता है और एक आदमी उझड़ पथ पर चलता है, उन्मार्ग में चलता है। शूलें किसके चुभेंगी?'
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