________________
कवि ने मूर्ख एवं आग्रही व्यक्ति का एक 'कवित्त' में सुन्दर चित्रण किया है
पकड्या सो छोड़े नहीं, मूरख खर का पूंछ। शास्त्र रीत जाणे नहीं, उलटी ताणै मूंछ। उलटी ताणै मूंछ, वचन अनाखी भाखै। पढ़े न अक्षर एक टांग सबही मैं राखै। मिथ्या करे विवाद झूठ का चाले छकड़ा।
छोड़न का तल्लाक पूंछ जो खर का पकड़ा।। 'स्वामी! क्षमा करना। मैं कटु बात कह रही हूं पर कहीं-कहीं कटु सत्य भी बोलना पड़ता है। यह कटु सत्य है पर आप भी वैसी ही रूढ़ि पाले हुए हैं। जो बात पकड़ ली है, उसे छोड़ना नहीं चाहते।'
स्वामी! मेरी बहनें तो भोली हैं, मीठी-मीठी बातें कहकर रह गई पर मैं तो कटु सत्य कहना चाहती हूं। जब तक कटु सत्य सामने नहीं आयेगा, यह जिद की बीमारी मिटेगी नहीं।
प्राचीन युग में बीमारी को मिटाने के लिए डाम देते थे, लोहे की शलाका से दागते थे।
आचार्य भिक्षु का विश्रुत दृष्टांत है। ऊंट बीमार हो गया। वैद्य ने दागने का परामर्श दिया। उसने लोहे की सूई को गरम किया और दाग देने लगा। योग ऐसा मिला कि उसी समय वैद्य उधर से आया। उसने पूछा-क्या कर रहे हो?'
'डाम दे रहा हूं।' 'अरे भाई! यह सूई से नहीं होगा, गरम शलाका से दागो तो काम होगा।'
'स्वामी! मेरी बहनों ने मीठी-मीठी बातें कहीं पर कुछ काम नहीं बना। आप जानते हैं कि वैद्य को कड़वी दवा देनी पड़ती है और रोगी को कड़वी दवा लेनी पड़ती है। मैं भी कड़वी दवा दे रही हूं, बिल्कुल कड़वी बात कह रही हूं। आप सोचिए, जिद मत कीजिए।'
'स्वामी! अब हमारी बात मान लीजिए। बहुत समय हो गया। रात भी बहुत कम शेष रही है। अब उठने का, जागरण का समय होने वाला है। आखी रात चर्चा में बिता दी पर आपने अपनी जिद नहीं छोड़ी पर अब इस जिद को जरा छोड़ दो। सरल चित्त होकर अनाग्रह भाव से हमारी बात को स्वीकार करो। अभी दीक्षा मत लो, मुनि मत बनो। समय आने पर हम भी आपके साथ मुनित्व को स्वीकार करेंगी।'
'स्वामी! आप महावीर वाणी की दुहाई देते हैं। आप कहते हैं-मैं महावीर की वाणी के आधार पर सब कुछ कर रहा हूं। पर आप देखो-महावीर ने क्या कहा है? 'जामा तिण्णि उदाहिआ'-आप आचारांग सूत्र के इस पाठ को पढ़ो। आचारांग सूत्र में याम तीन बतलाए हैं। याम का एक अर्थ है प्रहर। याम का एक अर्थ है अवस्था। तीन अवस्थाएं हैं। कुछ लोग बचपन में दीक्षित होते हैं, कुछ जवानी में दीक्षित होते हैं और कुछ बुढ़ापे में दीक्षा लेते हैं। तीनों याम हैं दीक्षा लेने के लिए। आपका यह आग्रह क्यों है कि अभी दीक्षा लेना है। अभी तो आप जवान हो रहे हैं। अभी आप संसार में रहो। सब कुछ देखो, सब कुछ खाओ, पीओ, धन का उपभोग करो। संपदा को, परिवार को बढ़ाओ। जब बुढ़ापे की दहलीज पर जाओ तब आप मुनि बन जाना। हम सब संकल्प करती हैं कि हम सब आपके साथ साध्वी बनेंगी।'
गाथा
परम विजय की
२४२