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गाथा परम विजय की
चिन्तनशील व्यक्ति विवेक से कार्य करता है। विवेक यह है-सबको एक समान नहीं मानना। नमक और कपूर को एक जैसा न मानना।
लूण, कपूर गिणे इक आगर।
गुणी, अगुणी न ठीक न ठाहर।। ऐसा नहीं होना चाहिए कि गुणी भी वैसा और अवगुणी भी वैसा। सज्जन भी वैसा, दुर्जन भी वैसा। नमक भी वैसा, कपूर भी वैसा। हंस भी वैसा और बगुला भी वैसा। कोयल भी वैसी और कौआ भी वैसा। दिखने में कोयल, कौआ समान लगते हैं पर जब वे बोलते हैं तो विवेकी यह पहचान कर लेता है कौन कोयल है और कौन कौआ? काकः काकः पिकः पिकः-कौआ कौआ है और कोयल कोयल है। हंस
और बगुला-दोनों सफेद होते हैं। विवेकी यह पहचान कर लेता है कि कौन हंस और कौन बगुला है? हंसा तो मोती चुगै मोती चुगता है, वह हंस है। बगुला मछलियों की टोह में रहता है। नमक भी सफेद है, कपूर भी सफेद है पर कपूर कपूर है और नमक नमक। आंख की दवा में कपूर डालना होता है, उसमें यदि नमक डाल दें तो कैसा रहे?
यह विवेक शक्ति मनुष्य को आगे बढ़ाने के लिए और समझ को ठीक रखने के लिए बहुत आवश्यक होती है।
कनकसेना ने किचिंत सोच-विचार के पश्चात कहा-'प्रियतम! मेरी तीन बहनों ने आपको जो कुछ कहा है, मैं उसकी पुनरावृत्ति नहीं करूंगी। पिष्ट-पेषण करना मुझे पसंद नहीं है। एक बार आटा पीस लिया, फिर उसको पीसो यह पिष्टपेषण है। मैं ऐसा नहीं करूंगी। मैं तो नई बात कहना चाहती हूं और ऐसी बात कहना चाहती हूं, जिससे आपको चिन्तन करने के लिए बाध्य होना पड़े।'
जम्बूकुमार ने पूछा-'बोलो, क्या है तुम्हारा तर्क? तुम क्या कहना चाहती हो?'
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