________________
गाथा परम विजय की
यह प्रश्न बहुत चर्चित रहा है-लोक में सार क्या है? जिसकी निष्पत्ति अच्छी हो, वह सार है। जिसकी निष्पत्ति कुछ न आए, वह असार है। बीज बोए, अंकुरित हुए। फसल पकने का समय आया। यदि मक्का, बाजरा, कुछ भी नहीं मिला तो फसल निस्सार हो गई। यदि अनाज उपलब्ध हुआ तो सार मिल गया। रोटी खाएं, भूख बुझ जाए तो वह सार है और भूख शान्त न हो तो वह निस्सार है।
हम सार और असार किसे माने? वस्तुतः सार वह है, जो अंत तक बराबर शक्तिशाली बना रहे, कभी कमजोर न पड़े, अपना काम करता रहे और मनुष्य को लाभ पहुंचाता रहे।
संस्कृत साहित्य में एक समस्या दी गई इस असार संसार में सार क्या है? इस समस्या के संदर्भ में अनेक विकल्प प्रस्तुत किए गए। एक अनुभूत आर्ष वाणी में इस प्रश्न के संदर्भ में कहा गया सच्चं लोयम्मि सारभूयं-सत्य ही लोक में सारभूत है। प्रश्न हो सकता है सत्य सार क्यों है? सत्य वह होता है, जो त्रैकालिक होता है, कभी मिटता नहीं है। जो मिट जाए, वह सार नहीं है। सत्य वह होता है, जो देशकाल से अबाधित होता है। जो देश-काल से विभाजित होता है, वह सार नहीं रहता।
सार वह होता है, जो सदा बना रहता है, कभी न्यून नहीं होता, समाप्त नहीं होता। दुनिया में सत्य ही एक ऐसा तत्त्व है, जो शाश्वत है, सदा एक रूप बना रहता है, कभी बाधित नहीं होता और निरन्तर अपने सार को प्रकट करता चला जाता है। __सत्य का मतलब है नियम। सत्य की खोज का अर्थ है नियमों की खोज। जो सार्वभौम नियम है, नियति है, उसका नाम है सत्य। दुनिया में जितने प्राकृतिक नियम हैं, सार्वभौम और जागतिक नियम हैं, जो सब जगह लागू होते हैं उन नियमों को खोजना सत्य को खोजना है। धर्म के आचार्यों ने एक नियम का पता लगाया एक ऐसी प्यास है, जो पानी पीने से नहीं बुझती।
जम्बूकुमार ने कहा-'प्रिये! तृष्णा कभी शांत नहीं होती, भोग की पिपासा कभी तृप्त नहीं होती। तुम जिस भोगाशंसा की बात कर रही हो, वह कभी पूरी होने वाली नहीं है। वह अमिट प्यास है।'
२१६