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गाथा परम विजय की
'प्रियतम! आप उस किसान जैसे हैं। अवसर को देखे बिना ही साधुत्व की बात कर रहे हैं। आपको अवसर का ज्ञान नहीं है। यदि अवसर को जानते तो इन बातों पर अवश्य ध्यान देते।'
‘प्रियतम! पहली बात तो यह है- माता-पिता वृद्ध हैं। उनकी सेवा किये बिना साधु बनने की बात कर रहे हैं। क्या यह कोई अवसर की बात है? जब तक माता-पिता जीवित थे, महावीर भी मुनि नहीं बने। जब माता-पिता का स्वर्गवास हो गया, उनकी प्रतिज्ञा पूरी हो गई तब वे मुनि बने । महावीर ने प्रतिज्ञा थी—जब तक माता-पिता जीवित हैं तब तक साधु नहीं बनूंगा। क्या आपके लिए उचित है कि माता-पिता तो जीवित हैं और आप साधु बनने की बात कर रहे हैं?
दूसरी बात–हम आठ कन्याएं तुम्हारे साथ आई हैं। कम से कम हमारी भावना का भी तो सम्मान करो। हमारी भावना भी देखो।
तीसरी बात यह है- इतना अपार धन आया है। इसका क्या करोगे? कैसे छोड़कर जाओगे? कोई दूसरा भाई होता तो सोच लेते कि चलो एक भाई जाएगा तो दूसरा भाई भोगेगा। पीछे सब अनाथ हैं। केवल बूढ़े मां-बाप बचेंगे, अन्य लोग इसे लूटेंगे। कितनी बदनामी होगी! थोड़ा चिंतन तो करो।
न परिवार की चिंता, न घर की चिंता, न धन की चिन्ता, न माता-पिता की चिंता और न पत्नियों की चिंता, किसी की चिंता नहीं। बस एक ही धुन सवार हो गई कि साधु बनूंगा, साधु बनूंगा। क्या यह कोई अवसर है?' कनकसेना ने इतना तेज उपदेश दिया कि कोई कच्चा मिट्टी का धोरा होता तो पानी में बह जाता। रेतीले टिब्बे और तिनके तो पानी में बह जाते हैं, पर चट्टान कभी बहती नहीं है। जम्बूकुमार तो कोई तिनका नहीं था, ऐसी दृढ़ चट्टान थी कि उस पर कोई असर नहीं हुआ। उसने सारी बात ध्यान से सुनी।
कनकसेना दो मिनट मौन हो गई, उसने देखा - क्या कोई असर हुआ है? वह चेहरे को पढ़ रही है पर संतोष नहीं हुआ। उसने सोचा- मैंने मर्म की बात कही है, मर्म को छुआ है। मैंने कोई आरोप नहीं लगाया। मैंने जो तर्क प्रस्तुत किया है, उसमें बहुत सचाई है । इस तर्क को कोई काट नहीं सकता - हर काम अवसर पर करना चाहिए, अवसर के बिना कोई भी काम अच्छा नहीं होता। सब अवसर देखते हैं। इतनी अच्छी बात मैंने बताई है पर पता नहीं क्या असर होगा? वह इस चिन्तन में डूब गई।
जम्बूकुमार सारी बात सुनकर धीर, शांत और उदात्त स्वर में बोले-'पता नहीं क्या बात है? क्या कोई ऐसी फैक्ट्री
है जिसमें तुम सब एक सांचे में, एक समान ढली हो। समुद्रश्री, पद्मश्री और पद्मसेना - सबने वाक्पटुता और कुशलता का परिचय दिया। '
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