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'महाराज! क्या करें? हम सामाजिक प्राणी हैं, हमें मनुहार माननी पड़ती है और जब मनभावन चीज सामने आ जाती है तब रहा भी नहीं जाता। उस समय खाना ही अच्छा लगता है।'
जम्बूकुमार ने भावपूर्ण स्वर में कहा-'प्रिये! तुम गहराई से सोचो। यह वर्तमान क्षण का सुख कितना दुःख देता है। क्या आदमी कभी भोग से तृप्त होता है?'
क्या व्यक्ति खाकर कभी तृप्त होता है? आदमी कहता है- मैं तृप्त हो गया पर दो-तीन घंटा बीतने के बाद उसे भूख फिर सताने लग जाती है। अमीर हो या गरीब, कोई भी तृप्त नहीं होता। व्यक्ति सुबह नाश्ता करता है, तृप्त हो जाता है। दोपहर का समय आता है, फिर अतृप्ति उभर आती है। आग कभी तृप्त नहीं होती। उसमें कितना ही ईंधन डालो, वह तृप्त नहीं होगी। मनुष्य कभी तृप्त नहीं होता। समुद्र कभी तृप्त नहीं होता, चाहे उसमें कितनी ही नदियां गिर जाएं। भोग का एक परिणाम है अतृप्ति।
'प्रिये! भोग से क्या कभी मनुष्य को तृप्ति मिली है? वह तो और अधिक अतृप्त बना देता है।'
'प्रिये! तुम इस सार तत्त्व को समझो-प्रवृत्ति काल में पुण्य का भोग सुखद हो सकता है किन्तु वह परिणाम काल में दुःखद हो जाता है।' __ प्रिये! एक अविवेकी आदमी के लिए पाप का परिणाम दुःखद होता है और पुण्य का परिणाम सुखद होता है। जिसकी विवेक चेतना जाग जाती है, उसके लिए पुण्य का परिणाम और पाप का परिणाम दोनों दुःखद बन जाते हैं।'
यही बात उत्तराध्ययन सूत्र में कही गई है-चक्रवर्ती के बहुत बड़ा साम्राज्य होता है, सुख भोग के प्रचुरतम साधन होते हैं फिर भी वे दुःख रूप हैं। क्योंकि जिसका परिणाम सुखद नहीं होता, वह वास्तव में दःखद ही होता है। मनुष्य चीनी खाता है। उसे चीनी खाने में मीठी लगती है। अगर वह खाने में मीठी नहीं लगती तो उसे कौन खाता? यह सफेद दानेदार चीनी दीखने में सुन्दर और खाने में स्वादिष्ट लगती है, किन्तु इसका परिणाम क्या होता है? डॉक्टर कहते हैं-ऐसिडिटी बढ़ाना है तो चीनी खाओ। जितनी चीनी खाओगे उतनी ज्यादा ऐसिडिटी बढ़ेगी। आजकल ऐसिडिटी की बीमारी बहत चल रही है। इस अम्लता की बीमारी में चीनी का मुख्य हिस्सा है। चीनी खाने में मीठी है किन्तु परिणाम में अम्ल है। आंवला खाने में कसैला या खट्टा लगेगा पर परिणाम में मधुर है।
आयुर्वेद का कथन है-कुछ पदार्थ खाने में मधुर होते हैं, परिणाम में मधुर नहीं होते। कुछ पदार्थ खाने में मधुर नहीं होते, पर उनका परिणाम मधुर होता है। भारतीय चिन्तन और दर्शन की धारा में उसका मूल्य अधिक माना गया जो परिणाम में सुखद होता है। उसका मूल्य बहुत कम माना गया, जो प्रवृत्ति काल में सुखद होता है। आगम का प्रसिद्ध सूक्त है-'खणमेत्त सोक्खा बहुकाल दुक्खा'–सांसारिक भोग क्षण भर के लिए सुख देते हैं किन्तु बहुत काल के लिए दुःख देने वाले हैं। उपभोग काल में सुख देते हैं, परिणाम में
गाथा परम विजय की
दुःख देने वाले हैं।
____ प्रिये! तुम मुझे गृहवासी बनने का परामर्श दे रही हो। क्या तुम इस सचाई को नहीं जानतीअसासयं-यह गृहवास अशाश्वत है। एक दिन इसे छोड़कर चले जाना है। इसे तुमको भी छोड़ना है, मुझे भी छोड़ना है।'
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