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जम्बूकुमार की इस मर्मभरी वाणी को सुनकर पद्मसेना का चेहरा ही नहीं, अंतरंग भी बदल गया। कोरा चर्मचक्षु ही नहीं खुला, अंतश्चक्षु भी उद्घाटित हो गया। जब अंतश्चक्षु उद्घाटित हो जाता है, तब दुनिया का दृश्य बदल जाता है। जब तक अंतर्दृष्टि नहीं जागती, दुनिया का दृश्य दूसरा प्रतीत होता है । अंतर्दृष्टि जागृत होते ही दृश्य बदल जाता है। पद्मसेना की अंतर्दृष्टि जागृत हो गई। वह कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं रही। वह आत्मविलोड़न और आत्ममंथन में लग गई। उसके भीतर में बिलोना शुरू हो गया, मंथन शुरू हो गया।
पद्मसेना ने सोचा-वास्तव में बात तो सच वही है जो जम्बूकुमार कह रहे हैं। हम मोह में फंसी हुई हैं और स्वयं ठगाई के जाल में फंस रही हैं।
पद्मसेना ने निश्चय किया—जब इस सत्य को मैंने समझ लिया है, मेरी अंतर्दृष्टि खुल गई है तब मुझे भी अब जम्बूकुमार का साथ देना है। उसने जम्बूकुमार के कथन का समर्थन किया। वह भी समुद्रश्री, पद्मश्री की पंक्ति में अवस्थित हो गई।
कनकसेना ने देखा-समुद्रश्री और पद्मश्री के पश्चात् पद्मसेना का हृदय भी बदल गया। पता नहीं क्या बात है जो जम्बूकुमार के साथ वार्तालाप करता है, वह उनका हो जाता है।
भगवान महावीर कैवल्य को उपलब्ध हो गए। जन प्रवाह भगवान की देशना सुनने के लिए उमड़ पड़ा। इंद्रभूति भगवान महावीर के बढ़ते प्रभाव से विचलित हुए। वे शास्त्रार्थ करने के लिए महावीर के पास आए और महावीर के शिष्य बन गये । अग्निभूति ने सोचा- कोई इन्द्रजाल है, महावीर ने इंद्रभूति को फंसा लिया। मैं जाता हूं, देखता हूं। वे बहुत गर्व के साथ जाते हैं और जाते ही उनका गर्व विगलित हो जाता है। वे स्वयं महावीर के शिष्य बन जाते हैं। वायुभूति सोचते हैं - सब फंस जाते हैं। मैं फंसने वाला नहीं हूं। उनके साथ भी वही होता है।
यह कैसी स्थिति है–जो जालमुक्त है, उसको लोग मायाजाल मान लेते हैं?
कनकसेना बोली-'पद्मसेना! तुम इतनी डींग हांक रही थी, लंबी-चौड़ी बातें कर रही थी कि मैं जम्बूकुमार को दो मिनट में समझा लूंगी पर तुम जलशून्य बादल जैसी निकली। जो जल से शून्य बादल होता है वह बहुत गरजता है पर पानी की एक बूंद भी नहीं गिरती । इसी प्रकार तुम बहुत गरजी पर कोई गार नहीं निकला। बिल्कुल निरुत्तर हो गई, मौन हो गई। अब तुम मेरा करतब देखो - मैं क्या करती हूं। मैं जम्बूकुमार को मनवाकर रहूंगी, यह मेरा दृढ़ निश्चय है।'
कनकसेना की गर्वोक्ति सार्थक बनेगी या निरर्थक संलाप मात्र ?
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गाथा परम विजय की
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