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गाथा परम विजय की
'हम तो भेंट लेते नहीं हैं।' ___ पति ने सोचा-हम तो थोड़ा रुपया लाये हैं। इतने बड़े आचार्य हैं, गुरु हैं। कम से कम सौ रुपया तो लाना था। वे बोले-'महाराज! क्षमा करना। अभी इतना ही पास में था। इस बार आएंगे तो ज्यादा लाएंगे। इतना तो आज आप ले लें।' गुरुदेव ने उन्हें बहुत मुश्किल से समझाया-हम रुपया-पैसा की भेंट लेते नहीं हैं।
एक धारणा बनी हुई है-राजा, देवता और गुरु के पास जाएं तो खाली हाथ नहीं जाएं।
ब्राह्मण ने राजा को स्वस्ति-वचन कहे, उपहार के लिए लाई हुई गठरी खोली। वह लकड़ियां देखते ही अवाक् रह गया। उसने सोचा-अरे! यह क्या हुआ? ईख कहां गए? वह हतप्रभ हो गया। राजा भी क्रुद्ध हुआ। महाकवि कालिदास ने सारा दृश्य देखा, सोचा-बेचारा कोई गरीब ब्राह्मण है, इसके साथ धोखा हुआ है। यह अनावश्यक राजा के कोप का भागी बनेगा, मारा जायेगा।
कालिदास बोले-'महाराज! आज बहुत अच्छी भेंट मिली है। इतनी सुंदर भेंट आज तक कोई नहीं लाया?'
'कालिदास! यह सुन्दर भेंट कैसे है?'-राजा ने विस्मय के साथ पूछा। 'राजन्! मैं इसका रहस्य बताता हूंदग्धं खाण्डवमर्जुनेन बलिना रम्यैर्दुमैर्भूषितं, दग्धा वायुसुतेन हेमनगरी लंका पुनः स्वर्णभूः। दग्धो लोकसुखो हरेण मदनः किं तेन युक्तं कृतं, दारिद्र्यं जगतापकारकमिदं केनापि दग्धं न हि।।
महाराज! खाण्डव वन कितना सुंदर था। रम्य वृक्षों से सुशोभित था। कौरवों ने कितना सुन्दर उद्यान बनाया। अर्जुन ने उसको भस्म कर दिया। उसने क्या अच्छा किया? वायुसुत हनुमान ने सोने की नगरी लंका को जला दिया। उसने क्या अच्छा किया? शंकर ने उस काम को जला डाला, जो लोगों के लिए सुखकर था। उसने क्या उचित किया? अनेक अच्छी चीजों को जला दिया गया। इस दरिद्रता को, जो सबसे खराब चीज है, किसी ने नहीं जलाया। यह ब्राह्मण इस लकड़ी के गट्ठर के माध्यम से आपसे निवेदन कर रहा है-महाराज! यह भेंट लो और इस दरिद्रता को भस्म कर डालो।
कालिदास की उक्ति से सारा वातावरण बदल गया। राजा प्रसन्न हो गया। उसने ब्राह्मण को इतना पारितोषिक दिया कि उसकी दरिद्रता समाप्त हो गई। ___ यह लोकतंत्र का युग है। लोकतंत्र में चुनाव होते हैं। चुनावों में सबसे पहला आश्वासन होता है कि हम गरीबी को समाप्त कर देंगे। इस आश्वासन को सुनते-सुनते लोगों के कान बहरे हो गये। एक ओर गरीबी को मिटाने के आश्वासन दिए जा रहे हैं, दूसरी ओर गरीब तो शायद ज्यादा गरीब बन रहा है। अमीर तो कुछ बने होंगे पर गरीब भी कम नहीं हैं। दरिद्रता बहुत बड़ा दुःख है। ___जम्बूकुमार ने कहा-'पद्मसेना! मेघमाली और विद्युत्माली-दोनों भाई दरिद्रता से परेशान थे, बहुत दुःखी बने हुए थे। एक दिन दोनों जंगल में गये। एक वृक्ष की छांह में बैठ गये। बहुत उदास और खिन्न। ऐसा योग मिला-एक विद्याधर आकाश मार्ग से यात्रा करते हुए जा रहा था। उसने देखा-वृक्ष के नीचे दो
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