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गाथा
'ओह!'
'जब तुम कभी पानी पीने के लिए अथवा किसी दूसरे काम से बाहर जाते तब मैं मेरा हीरा तुम्हारी पोटली में बांध देता। तुम वापस आते, तब मैं पानी पीने या आवश्यक काम के लिए चला जाता। मुझे यह मालूम है-पीछे से तुम सारा प्रतिलेखन कर लेते, मेरा पूरा सामान छान लेते किन्तु अपना सामान नहीं देखते। मैं वापस आकर अपना हीरा पुनः ले लेता। इस प्रकार तीस दिन तक यह क्रम चला। इसमें ठगाई कोई नहीं है। यह सचाई है कि आदमी दूसरे को देखता है, अपने आपको नहीं देखता। अगर तुम अपना सामान संभाल लेते तो हीरा तुम्हें मिल जाता।'
ठग यह सुनकर स्तब्ध रह गया। ठगता कौन है? ठगा वह जाता है जो दूसरों को देखता है।
जम्बूकुमार ने कहा-'पद्मसेना! मैं तो अपने आपको देख रहा हूं। मुझे कोई नहीं ठग सकता। ठगाई का कोई प्रश्न ही नहीं है किन्तु मैं विद्युत्माली जैसा मूर्ख भी नहीं बनना चाहता।' ___जम्बूकुमार के इस कथन ने सबके मन में एक जिज्ञासा को जन्म दिया। आठों पत्नियां एक साथ बोल उठीं-'प्रियतम! वह विद्युत्माली कौन था? वह कैसे मूर्ख बना?'
जम्बूकुमार ने कहा-'प्रिये! उसकी कथा बहुत बोध-प्रद है। एक नगर में दो भाई रहते थे। एक का नाम था विद्युत्माली और एक का नाम था मेघमाली। दोनों बहुत दरिद्र थे। पास में कुछ नहीं था। बहुत दरिद्रता का जीवन बिता रहे थे। प्रिये! तुम जानती हो-दरिद्रसमो पराभवो नास्ति-दरिद्रता के समान इस दुनिया में कोई पराभव, तिरस्कार, अपमान नहीं है। दरिद्र आदमी की स्थिति बड़ी विचित्र होती है। कोई उसको पूछता नहीं, सामने तक नहीं देखता। एक संस्कृत कवि ने यहां तक कह दिया
रे दारिद्रय! नमस्तुभ्यं, सिद्धोऽहं त्वप्रसादतः।
सर्वानहं च पश्यामि, मां न पश्यति कश्चन।। दरिद्रता! तुम्हें नमस्कार। दरिद्रता ने पूछा-मुझे नमस्कार क्यों? बड़े आदमियों को नमस्कार करो, धन को नमस्कार करो, संपदा को नमस्कार करो। दरिद्रता को नमस्कार करने से तुझे क्या मिलेगा?
कवि ने उत्तर दिया-दरिद्रता की कृपा से मैं तो सिद्ध बन गया हूं, भगवान बन गया हूं।' 'यह कैसे कह रहे हैं आप?'
कवि ने कहा-'भगवान ऊपर बैठा सबको देखता है किन्तु उसे कोई नहीं देखता। मैं दरिद्र हूं, मैं भी सबको देखता हूं, मुझे कोई नहीं देखता। मैं सबके सामने जाता हूं, सबका मुंह देखता हूं पर मेरे सामने कोई नहीं देखता इसलिए मैं तो सिद्ध भगवान बन गया हूं।'
दरिद्रता में बड़ी कठिनाई होती है। जो दारिद्रय भोगता है वही जानता है कि दरिद्रता कितनी बड़ी समस्या है। ___ सन् १९६४ में जयपुर में प्रवास था। एक दिन एक सेवानिवृत्त कमिश्नर आए। उन्होंने एक घटना सुनाई। मैं बांसवाड़ा में जिलाधीश था। एक बार आदिवासी इलाके का दौरा किया। एक स्कूल में गया।
परम विजय की
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