________________
दो क्षण आत्मनिरीक्षण और गहन चिन्तन के बाद जम्बूकुमार ने मौन खोला, आंखें खोली और बोले-'पद्मसेना! तुमने जो यह आरोप लगाया है कि मैं ठगा गया हूं, वह सही नहीं है। वस्तुतः मैं नहीं ठगा । गया हूं। तुम सब ठगी गई हो। पदार्थ ने तुमको इतना ठग लिया कि तुम्हें पदार्थ के सिवाय कुछ दिखाई नहीं । देता।'
'पद्मसेना! तुम जानती हो कौन ठगा जाता है? और कौन ठगता है? दूसरा कोई नहीं ठगता। 'अप्पा अप्पाणं वंचए'-आत्मा आत्मा को ठगता है। आदमी स्वयं अपने आपको ठगता है, दूसरा कोई नहीं ठगता। वह व्यक्ति ठगाई में जाता है, जो स्वयं को नहीं देखता।'
दो यात्री जा रहे थे, रास्ते में मिल गये। बातचीत हुई। दोनों को पैदल चलना था। एक यात्री ने पूछा-'कहां जा रहे हो?'
'मैं पटना जा रहा हूं। तुम कहां जा रहे हो?' 'मैं पटना के पास एक गांव है, वहां जा रहा हूं।'
दूसरे यात्री ने उल्लास व्यक्त करते हुए कहा–'चलो, बहुत लंबा रास्ता है। हम साथ हो जाएं, एक से दो हो जाएं तो अच्छा रहेगा, सुविधा हो जायेगी।'
दोनों ने समझौता कर लिया और दोनों साथ हो गये। लगभग एक महीने तक दोनों साथ रहे। दोनों पटना के आस-पास पहुंचे। एक यात्री बोला-'भैया! अब मेरा रास्ता दूसरा है। मुझे इधर जाना है। तुम पटना जाओगे। हम साथ रहे, बहुत अच्छा रहा, बड़ा आनन्द रहा, बड़ी सुविधा रही।'
गाथा दूसरा यात्री ठग था, वह बोला-'भाई! तुमने मुझे पहचाना या नहीं?'
परम विजय की 'हां, मैंने पहचान लिया।' 'पूरा नहीं पहचाना होगा? 'भाई! आप क्या कहना चाहते हैं?'
'भाई! मैं ठग हूं। मैंने बहुत लोगों को ठगा है। तुम मुझे सेठ लग रहे हो पर सेठ साहब! आज ऐसा लगता है कि तुम महाठग हो।'
'यह कैसे कह रहे हैं आप?'
'भाई! मुझे पता चल गया कि तुम्हारे पास एक बहुमूल्य हीरा है। मैंने बहुत प्रयत्न किया कि मैं उसको ले लूं। पर तुम तो ऐसे ठग निकले कि आज तक मैं हीरे के दर्शन भी नहीं कर पाया। तुम उसे कहां रखते
थे?'
'क्या तुम इसका राज जानना चाहते हो?'
'हां, मैं तुम्हारी ठगविद्या को जानना चाहता हूं। तुमने ऐसी कौन-सी विद्या सीखी है जो ठग को भी ठग ले।' ___ यात्री बोला-'भाई! मैं एक सचाई को जानता हूं और वह सचाई यह है हर आदमी दूसरे को देखता है, अपने आपको नहीं देखता।' २०६