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गाथा परम विजय की
प्रत्येक मनुष्य में विचार, चिंतन और समझ होती है। किसी व्यक्ति में समझ ज्यादा होती है, वह अपने आपको सबसे ज्यादा समझदार मानता है। एक छोटा बच्चा भी अपने आपको ज्यादा समझदार मानता है। दो बच्चे पास-पास खड़े थे। एक व्यक्ति ने पूछा-दोनों में ज्यादा समझदार कौन है? दोनों बच्चे एक साथ बोल उठे–'मैं ज्यादा समझदार हूं।'
प्रायः हर व्यक्ति अपने आपको अधिक समझदार समझता है, वह इस भाषा में सोचता है और कहता भी है यदि मैं होता तो यह काम कर देता। तुम यह काम नहीं कर पाये। यह एक प्रकृति है मनुष्य की। पद्मसेना ने भी इस प्रकृति से काम लिया, वह बोली-'पद्मश्री! हमने समझा था, तुम बड़ी चतुर हो, होशियार हो पर तुम कमजोर निकली। जम्बूकुमार ने तुम्हें प्रभावित कर दिया और तुम प्रभावित हो गई। तुम्हें ऐसी मर्म की बात कहनी थी कि जम्बूकुमार मौन हो जाते। किन्तु उलटा हो गया-जम्बूकुमार तो मौन नहीं हुए और तुम मौन हो गई।
नहीं हुआ मेरा असर तेरे पर, तेरा असर हो गया मेरे पर। ___ पद्मसेना खड़ी हुई और बोली-'प्रियतम! मेरी दो बहनों ने तुम्हें कुछ बातें बताईं, किन्तु लगता है वे बातें दमदार नहीं थीं इसलिए आप उन पर हावी हो गये पर मेरे साथ ऐसा नहीं होगा। मैं ऐसी मर्म की बात कहना चाहती हूं कि आपकी आंखें खुल जाएं। अब तक आपकी आंखें बंद बनी हुई हैं। लगता है किसी ने सम्मोहन अथवा वशीकरण कर दिया है, किसी के मायाजाल में आप फंस गए हैं।' ___प्रियतम! यह दुनिया बड़ी विचित्र है, इसमें ठगाई बहुत चलती है। आपको कोई ठग गुरु मिला है। उसने आपको फंसा लिया। अब आपको सत्य दिखाई नहीं दे रहा है। मुझे लगता है कि न तो कोई वैराग्य है, न कोई मुनि बनने की बात है, न और कुछ बात है। उस ठगाई के चक्कर में आपका दिमाग ऐसा हो गया कि केवल वही और वही दिखाई दे रहा है। आप सोच रहे हैं क्या ऐसा होता है? प्रियतम! बिल्कुल
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