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जम्बूकुमार दौड़ा और फिर से रत्नचूल को ऐसा भुजदण्ड में बांध लिया कि छूटने का अवकाश ही नहीं रहा।
om ___ यह बात आश्चर्यकारी लगती है कि इतना जल्दी क्या कोई उपकार को भूल जाता है? दुनिया के इतिहास को देखें। ऐसे लोग हुए हैं कि किसी ने पहले क्षण में उपकार किया, दूसरे क्षण में पहचानना नहीं चाहते कि कौन है यह? प्रसिद्ध कहानी है भाई आया गरीब अवस्था में। पूछा बहन से यह कौन है? बहन ने कहा मैं तो नहीं जानती। कोई घर में रहने वाला नौकर होगा।
उपकार को भी भूल जाते हैं। समाचार-पत्र में पढ़ा-अमुक व्यक्ति ने अमुक के साथ ऐसा किया? उससे पूछा गया-आप उसको जानते हैं। उत्तर दिया-नहीं, मैंने उसका नाम ही नहीं सुना। बड़े-बड़े लोग भूल जाते हैं उपकार को। कठिनाई में सहयोग देने वाले को भी भूल जाते हैं। थोड़ा-सा सुख का क्षण आया, विकट दुःख को भी भूल जाते हैं। ___ रत्नचूल जम्बूकुमार के बल को जानता था-कुमार बलवान है, अद्वितीय पुरुष है। किंतु जाना अनजाना हो गया। सारी घटना को भूल गया। मुक्त रत्नचूल दूसरी बार फिर वज्र-पंजर में आ गया, बंदी बन गया। युद्ध समाप्त हो गया।
जम्बूकुमार ने मृगांक को भी नागपाश से मुक्त कर दिया। राजा मृगांक, व्योमगति, जम्बूकुमार आदि राजसभा में आ गए। रत्नचूल बंदी बना बैठा है। जम्बूकुमार ने चिंतन किया मैं कहां आ गया? मैं नहीं जानता था कि यह केरला कहां है? मैं मृगांक गाथा
परम विजय की को भी नहीं जानता था, रत्नचूल को भी नहीं जानता था। मेरा लक्ष्य तो दूसरा था। मैं अपनी शक्ति के । विकास के मार्ग पर, आत्मा की खोज के मार्ग पर चल रहा था पर अनायास सम्राट श्रेणिक के प्रति मन में भावना जागी। मैंने इस बात को स्वीकार कर लिया, यहां आ गया, लड़ाई के मैदान में फंस गया।
जम्बूकुमार ने अपना आत्मालोचन किया, विहंगावलोकन किया। युद्धभूमि में आकर मैंने कोई ऐसा काम तो नहीं किया है जो काम नहीं करना चाहिए था? कुछ तो हुआ है। मैंने किसी को नहीं मारा, किसी की हत्या नहीं की फिर भी मन को तो दुःखाया है, भावना को तो चोट पहुंचाई है। सबसे ज्यादा रत्नचूल को व्यथित एवं प्रताड़ित किया है। अब क्या करना चाहिए?
जम्बूकुमार की चिन्तनधारा आगे बढ़ी एक काम हो गया। रत्नंचूल की पराजय हो गई। मृगांक को मैंने विजयी बना दिया, किंतु क्या मृगांक सदा विजयी बना रहेगा? क्या रत्नचूल प्रतिशोध नहीं लेगा? मैं कहां-कहां आऊंगा? कब आऊंगा? जल डालकर इस आग को शांत कर देना चाहिए।
यह चिंतन बहुत स्वस्थ चिंतन है। भयंकर युद्ध के बाद अगर कोई मैत्री करा दे तो शांति का युग शुरू हो सकता है। उस समय कोई मैत्री न करा सके तो वैर का अनुबंध चलता रहता है। आचार्य भिक्षु ने लिखा-मित्र सूं मित्रपणो चाले, वैरी सू वैरीपणो चालतो जावे।
वैर का अनुबंध होता है। एक व्यक्ति वैर का उसी जन्म में बदला लेना चाहता है और उस जन्म में न ले सके तो अगले जन्म में फिर बदला लेना चाहता है। यह चलता रहता है वैर का अनुबंध। लड़का जन्मा।
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