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जम्बूकुमार बोला- सम्राट् श्रेणिक का पता लगाने में समय क्यों गंवाएं? पता क्या करना है ? हम उसी रास्ते से चलें। कहीं न कहीं सम्राट् श्रेणिक मिल जाएंगे। जब राजगृह से प्रस्थान कर दिया है और यहां आ रहे हैं तो रास्ते में अवश्य मिलेंगे।'
जम्बूकुमार का यह प्रस्ताव सबको उचित लगा । खोज की बात समाप्त हो गई। शीघ्र प्रस्थान का निर्णय हो गया और......
अनेक विमान सज्जित हो गए। एक विमान में रत्नचूल और उसका परिवार था। एक विमान में मृगांक का परिवार, कन्या विशालवती थी। उन्होंने विवाहोचित सामग्री और उपहार भी ले लिए।
विमान में ही बैठना है। मैं ही आपको लाया था और
व्योमगति ने कहा—'जम्बूकुमार ! आपको
मैं ही आपको पहुंचाना चाहता हूं।'
जम्बूकुमार ने व्योमगति के अनुरोध को स्वीकार कर लिया।
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सबने एक साथ प्रस्थान किया । विमानों का एक काफिला सा चल पड़ा। वे चले जा रहे हैं आकाश मार्ग से और ध्यान है नीचे पृथ्वी की ओर। इसलिए कि सबके मन में श्रेणिक से मिलने का उत्साह है। दो घंटे चलने के बाद एक पर्वत आया। नाम था कुरलाचल। उस पर्वत पर काफी कोलाहल सुनाई दिया।
जम्बूकुमार ने नीचे झांका, बोला- 'व्योमगति ! नीचे इतना कोलाहल क्यों हो रहा है?' व्योमगति ने कहा—'हां कोलाहल तो हो रहा है। काफी आदमी इकट्ठे भी हो रहे हैं।' जम्बूकुमार बोला-'ध्यान से देखो कि कौन है? कहां जा रहे हैं?'
व्योमगति ने विमान को नीचे लिया। ध्यान से देखने लगे।
उसी समय सम्राट् श्रेणिक रथ से बाहर आए । पर्वत की अधित्यका पर चढ़े। एक चट्टान पर विश्राम के लिए बैठे, पर्वतीय सुषमा को निहारने लगे । जम्बूकुमार सम्राट् श्रेणिक को देखते ही हर्षोत्फुल्ल हो उठा, चट्टान की ओर संकेत करते हुए बोला- 'व्योमगति ! देखो, सम्राट् श्रेणिक सामने हैं।'
व्योमगति की दृष्टि तत्काल चट्टान पर केन्द्रित हो गई-'अरे! सम्राट् श्रेणिक अकेले चट्टान पर बैठे हुए हैं। प्रकृति के सौन्दर्य को देखने में लीन हैं। '
जम्बूकुमार बोला- 'व्योमगति ! विमान को नीचे उतारो।'
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राजा मृगांक और राजा रत्नचूल ने उनका अनुसरण किया।
प्रकृति के सौन्दर्य में लीन सम्राट् श्रेणिक का ध्यान भी आकाश की ओर गया-अरे! ये विमान कहां से आ रहे हैं? कौन हैं इनमें? क्या कोई विद्याधर युद्ध के लिए आ रहे हैं?
दूसरे ही क्षण सम्राट् ने देखा - विमान इसी पर्वतीय अधित्यका पर उतर रहे हैं।
जम्बूकुमार सम्राट् श्रेणिक को देख रहा है किन्तु सम्राट् श्रेणिक जम्बूकुमार को नहीं देख पा रहे हैं।
एक ओर उत्साह और उल्लास मूर्त बन रहा है तो दूसरी ओर कुतूहल और जिज्ञासा के साथ अज्ञात भय का प्रकंपन है।
मिलन का क्षण कितना विलक्षण होगा? और जम्बूकुमार का अगला कदम क्या होगा ?
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गाथा
परम विजय की