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गाथा परम विजय की
समुद्रश्री — पिताश्री ! परिणाम जो होना है, वह होगा।'
भवितव्यं भवत्येव नालिकेरफलाम्बुवत्। गच्छत्येव हि गंतव्यं, गजभुक्तकपित्थवत् ॥
'पिताश्री! आप जानते हैं, नारियल के पेड़ में पानी कहां सींचा जाता है ? '
'जड़ में।'
'वह निकलता कहां है?'
'फल में।'
पानी सींचते हैं जड़ में और पानी निकलता है नारियल के फल में जड़ में सींचो तो पानी ऊपर तक पहुंच जायेगा इसलिए जो जाना है वह चला जायेगा।
हाथी कैथ (कपित्थ) का फल खाता है। कपित्थ का फल खट्टा होता है, लोग उसकी चटनी बनाते हैं। बिहार में यह फल काफी होता है। हाथी उसे पूरा का पूरा निगल जाता है। वह उसके कोई काम नहीं आता। उसी प्रकार बाहर आ जाता है।
समुद्रश्री ने अपनी भावना को अभिव्यक्ति दी - 'पिताश्री ! आप चिंता न करें। जो होना है वह होगा । किन्तु.....'
पिता - 'समुद्रश्री! क्या कोई मन में संशय है ?'
‘नहीं पिताश्री! मैं चाहती हूं—हम एक बार आठों बहनें मिल लें तो अधिक उपयुक्त रहेगा।'
श्रेष्ठी को यह प्रस्ताव समीचीन लगा । उसने तत्काल संदेशवाहक को बुलाकर संदेश दिया। संदेशवाहक द्वारा आठों घरों में यह संवाद पहुंच गया। सर्वत्र इसी समस्या पर चिन्तन चल रहा था - अब क्या करना चाहिए, माता-पिता, कन्या सब यही सोच रहे थे। कभी-कभी टेलीपेथी हो जाती है। एक की बात दूसरे तक पहुंच जाती है। सबके मन में परस्पर मिलने की इच्छा प्रबल बनी हुई थी। सब यही सोच रहे थे हम सब परस्पर मिलकर कोई निर्णय करेंगी। उस विचार के प्रकंपन सबके हृदय में संक्रांत हो गए। व्यक्ति के चिन्तन
के
परमाणु आकाश में फैलते हैं, संबद्ध व्यक्ति तक पहुंचते हैं, उसके दिमाग से टकराते हैं। आज का युग होता तो फोन पर तत्काल बात कर लेते अथवा फैक्स भेज देते। उस समय न फैक्स था और न फोन की सुविधा | बिना फोन किए भी सबके विचार एक समान हो गये।
संदेशवाहक के माध्यम से स्थान का निर्धारण हो गया। सातों कन्याएं ज्येष्ठ श्रेष्ठी के प्रासाद में पहुंच
गईं।
आठ कन्याओं में ज्येष्ठ थी समुद्रश्री । उसने सबका स्वागत किया। आठों बहिनें अंतरंग कक्ष में चिन्तन के लिए प्रविष्ट हुईं। पर्यंक पर आसीन हुईं। समुद्रश्री ने वार्तालाप प्रारंभ करते हुए कहा - 'बहनो! हमारे सामने एक बड़ी समस्या आ गई है। '
'हां।'
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