________________
.
.
.
.८
०
.
.
.
.
गाथा परम विजय की
दो बहुत प्रसिद्ध शब्द हैं-भौतिकवाद और अध्यात्मवाद। भौतिकवाद का आधार है इंद्रिय चेतना, इंद्रिय प्रत्यक्ष। अध्यात्मवाद का आधार है अतीन्द्रिय चेतना, अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष। इन दोनों का संघर्ष निरन्तर रहा है। दोनों समानान्तर रेखाएं हैं, साथ-साथ चलती हैं पर मिलती कभी नहीं। दोनों में दिशा-भेद भी है। आगे जाकर दिशाएं भी बदल जाती हैं। लक्ष्यभेद भी है, चिंतन और कार्य का भेद भी है। आध्यात्मिक भूमिका पर जो व्यक्ति होता है, वह पदार्थ को पदार्थ की दृष्टि से देखता है। भौतिक दृष्टिकोण वाला व्यक्ति पदार्थ को प्रियता और अप्रियता की दृष्टि से देखता है। अलग-अलग दृष्टिकोण बनता है और अलग-अलग व्यवहार होता है।
जम्बूकुमार ने कहा-'समुद्रश्री! तुम बंधन में बांधना चाहती हो। यह इंद्रिय चेतना बांधती है, आकर्षण पैदा करती है। मैं इस बंधन और आकर्षण से मुक्त होना चाहता हूं।' ___ जम्बूकुमार ने दृष्टांत की भाषा का प्रयोग करते हुए भावपूर्ण शब्दों में कहा-'समुद्रश्री! तोता इस पिंजरे में कब तक रहेगा। बंधन आखिर बंधन ही है।' ___ 'समुद्रश्री! पिंजरा पिंजरा ही है, चाहे लोहे का पिंजरा मिले या सोने का। एक तोता राजमहल के सोने के पिंजरे में बंद है। उसे सारी सुख-सुविधाएं प्राप्त है। राजा स्वयं उसे अपने हाथ से नहलाता है। स्वादिष्ट फल और मेवा खिलाता है। उसे बहुत स्नेह देता है। उसकी हर इच्छा पूरी करता है। इतना सब कुछ होने पर भी पिंजरा उसे एक बंधन प्रतीत होता है। वह तोता उस जंगल में, पेड़ के उस कोटर में, जहां जन्मा था वहां जाना चाहता है, अनंत आकाश में उड़ान भरना चाहता है। पिंजरे में बंद रहना उसको पसंद नहीं है।'–दृष्टांत उपसंहार करते हुए जम्बूकुमार ने हृदय को झकझोरने वाला प्रश्न किया- 'समुद्रश्री! क्या तुम जानती हो-यह शरीर क्या है?'
‘प्रियतम! आप बताएं-यह शरीर क्या है?'
१७७