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'प्रियतम! आज आपको सब कुछ प्राप्त है, घर है, सम्पदा है, सर्वात्मना समर्पित हम नवोढ़ा हैं। ऐसा लगता है कि अब आपमें देव बनने की भावना जाग गई। साधु क्यों बन रहे हो? इसलिए ही तो साधु बन रहे हैं कि मुझे देव बनना है, स्वर्ग में जाना है। पर आप ध्यान दें-कहीं बंदर वाली गति न हो जाए। उस वानर मनुष्य ने देवता बनना चाहा था पर मूल को ही खो दिया, फिर बंदर बन गया। आप अतिलोभ कर रहे हैं, देव बनने की बात सोचकर साधु बनना चाहते हैं। कहीं ऐसा न हो कि इस आदमी के जन्म को भी व्यर्थ गंवा दें। न इधर के रहें और न उधर के।'
_ 'प्रियतम! आप हमें महावीर की वाणी सुनाते हैं। मैं भी महावीर की वाणी आपको सुनाना चाहती हूं। महावीर ने कहा-'णो हव्वाए णो पाराए'–न इधर का रहा, न उधर का रहा, कहीं का नहीं रहा। प्रियतम! आप भी किधर के नहीं रहोगे। न तो आदमी रहोगे और न देव बन पाओगे इसलिए मेरा कहना मानो-अतिलोभ मत करो। जो है उसमें संतोष करो। अति सर्वत्र वर्जयेत् मेरी इस बात पर ध्यान दो-चाहे कितना ही अच्छा हो, अति मत करो।' __ पद्मश्री ने अपनी बात को विराम देते हुए सोचा-समुद्रश्री अपनी बात सम्यक् प्रकार से रख नहीं पाई थी। उसका वक्तव्य था कि तुम वर्तमान को छोड़कर भविष्य के लिए चिंता कर रहे हो, यह ठीक नहीं है। मेरी बात ज्यादा सटीक है। मैंने सरलता से यह समझा दिया है-अति सर्वत्र वर्जयेत्-अति मत करो। अति करना अच्छा नहीं है। मेरी यह बात समझ में आने वाली बात है, व्यावहारिक बात है। ___ एक बात व्यावहारिक होती है, वह समझ में आ जाती है। एक बात गहरी होती है, शीघ्र समझ में नहीं आती। गहराई में हर कोई जा नहीं सकता। सीधी सादी बात कही जाती है तो वह समझ में आ जाती है। मेरी बात जरूर जम्बूकुमार के समझ में आ जायेगी। ___पद्मश्री अपनी प्रस्तुति पर मुग्ध हो रही है। समुद्रश्री सोच रही है पद्मश्री ने बहुत सुन्दर तर्क प्रस्तुत किया है। अपनी बात को बहुत प्रभावी ढंग से रखा है पर जम्बूकुमार बहुत प्रतिभासंपन्न है। उसकी तीक्ष्ण बुद्धि के सामने इसके तर्क टिकेंगे नहीं। जिस प्रकार उसने मुझे निरुत्तर किया है, इसे भी निरुत्तर कर देगा।....और....इसकी वही मानसिकता बनेगी, जो मेरी बनी है।
छह नवोढ़ाएं सोच रही हैं-समुद्रश्री को जम्बूकुमार ने अपने मत का समर्थक बना लिया। क्या वह पद्मश्री को भी अपने पक्ष में कर सकेगा? यदि वह ऐसा करने में सफल रहा तो हमारा पक्ष दुर्बल हो जाएगा।....हमें भी कुछ सोचना होगा।.... ____ जम्बूकुमार सोच रहा है पद्मश्री बहुत चतुर और विचक्षण है। इसने अपनी बात बहुत प्रखरता से रखी है। यदि मैं इसके तर्कों को निरस्त कर दूंगा तो यह मेरे पथ की अनुगामिनी हो जाएगी। इसकी शक्ति और प्रतिभा का उपयोग श्रेयस् के लिए होगा। इसकी चेतना के ऊर्ध्वारोहण का पथ प्रशस्त हो सकेगा।
किसकी सोच सफल होगी? क्या पद्मश्री के मनसूबे पूरे होंगे या समुद्रश्री की तरह पद्मश्री भी जम्बूकुमार के पथ की अनुगामिनी बनेगी?
परम विजय की