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गाथा परम विजय की
से निकलती है। जो बात मज्जा तक चली जाती है, वह बदलती नहीं है। जम्बूकुमार ने एक वाणी निकाल दी मुझे मुनि बनना है, आत्मा का दर्शन करना है, अब वह वाणी पलट नहीं रही। जम्बूकुमार अपनी लय में बैठा है। पांच-दस मिनट बीत गए।
कन्याओं के लिए यह स्थिति असह्य हो गई। उनकी कामाग्नि प्रदीप्त बनती चली गई। काम-भोग की अभिलाषा प्रबल हो गई किन्तु इस अभिलाषा को जो पूरा कर सकता है, वह मूर्ति की तरह स्थिर एवं मौन बैठा है
अन्यं तासां शरीरेषु, चलति स्म ज्वरानलः।
प्रत्युपायैरसह्यश्च, साभिलाषो रिम्सया।। जम्बूकुमार ने सोचा मैं दुधारी तलवार पर चल रहा हूं। मैंने इन आठ कन्याओं के साथ पाणिग्रहण कर लिया। धोखा तो नहीं दिया फिर भी संबंध तो जोड़ लिया। अब ये सामने बैठी हैं, मौन हैं, उदास हैं, गंभीर हैं, बोलने की स्थिति में नहीं हैं। आखिर मौन मुझे ही खोलना है। मैं बातचीत शुरू करूं क्योंकि मुख्य कर्ता तो मैं रहा। मुझे अपनी बात को स्पष्ट कर देना चाहिए।
जम्बूकुमार पहली बतलावै, अंतरंग री बात सुणावै। सवारे लेसूं संजम भार, थे कांई करसो बैठी लार।। करणी हुवै तो करो मोसूं बात, उतावल सूं बीती जाए रात। हिवड़ा लगती बैठी मो तीर, सवारे ते पिण नहीं छै सीर।। जम्बूकुमार ने मौन खोला–कैसे बैठी हो, क्या सोच रही हो, ऐसे क्यों बैठी हो? प्रसन्न रहो, बातचीत शुरू करो। मेरे साथ आई हो तो अपने मन की बात बताओ।
सबने मन ही मन कहा-तुम्हारे कारण ही तो ऐसे बैठी हैं। तुम्हारा ही प्रताप है, प्रसाद है, कृपा है। नहीं तो हम क्यों उदास बनती? आज विवाह की पहली रात, सुहाग की रात, हम क्यों ऐसी विरह वेदना में तड़पती रहती? हमारी उदासी का कारण तुम स्वयं हो फिर भी पूछ रहे हो-उदास क्यों हो? ____ जम्बूकुमार बोला-'मैं अपने मन की बात बता दूं। मेरे मन की बात यह है-दिन उगते ही मुझे मुनि बनना है, संयम स्वीकार करना है। मैं आप सबसे पूछना चाहता हूं-मैं तो साधु बन जाऊंगा, दीक्षा ले लूंगा, तुम पीछे क्या करोगी? यह मुझे बता दो कि तुम्हें क्या-क्या करना है, जिससे मैं सारी व्यवस्था कर दूं। तुम्हें क्या काम करना है? व्यापार करना है, धंधा करना है या कोई ऑफिस खोलना है? लिखना-पढ़ना है? सिलाई, रंगाई करना है? क्या करना है? पीछे क्या करोगी? यह मुझे बता दो तो मैं सारी व्यवस्था कर