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'क्यों?'
'आगे नहीं जा सकते। पहले इस तलवार को नीचे गिराओ।'
'भाई! मारना मत। मैं अभी गिरा देता हूं।'
कायर आदमी क्या कर सकता है? एक व्यक्ति जंगल में जा रहा था। किसी ने पूछा- तुम जंगल में जा रहे हो, वहां शेर मिल गया तो क्या करोगे ?'
वह बोला- 'मैं क्या करूंगा ! जो करना है वही करेगा।'
रामायण में एक कथा आती है। एक व्यक्ति बहुत डींग हांकता था कि मैंने ऐसा कर दिया, वैसा कर दिया। पत्नी ने सोचा—रोज देरी से आता है। पूछती हूं इतनी देरी से क्यों आए तो उत्तर देता है- आज रास्ते में दस चोर मिल गये। तुम्हारा सुहाग रहना था। दस को मैंने मारा, पीटा और छुड़ाकर आ गया। कभी कहता है - दस डाकू मिल गये। कभी कुछ कहता है, बड़ी डींगें हांकता है। आखिर बात क्या है ?
पत्नी ने निश्चय किया-सचाई को जानना है। उसने वेश बदला, आदमी का वेश धारण किया। जिस रास्ते से पतिदेव आ रहे थे, उस मार्ग पर एक वृक्ष के नीचे खड़ी हो गई। कुछ अंधकार गहरा हुआ । पतिदेव उस वृक्ष के पास आए। पत्नी ने पुरुष के स्वर में ललकारते हुए कहा- कौन हो तुम?
ललकार सुनते ही वह कांपने लगा, गिड़गिड़ाने लगा। उसने उसी अंदाज में कहा-'यदि कुशलक्षेम चाहते हो तो अपनी सामान की पोटली नीचे गिरा दो।'
भय से धूजते हुए पतिदेव ने विक्रय के लिए संगृहीत सामान की पोटली गिरा दी।
पत्नी ने हाथ में पोटली ली और एक जोरदार चांटा भी लगा दिया।
वह गाल को सहलाते हुए क्षमा मांगने लगा। उसने कहा- 'आज तो तुम्हें छोड़ रहा हूं। वह भी इस शर्त पर कि एक घंटा तक यहां से उठना नहीं है। यदि उठे तो खैर नहीं है।'
पतिदेव बेचारा बैठ गया। घंटा दो घंटा तक नहीं उठा। रात को बहुत भयाक्रांत घर आया । पत्नी ने कहा—'भले आदमी! आज तो बहुत देर कर दी।'
पति ने शेखी बघारते हुए कहा—'पूछो मत। आज तो पचीस चोर मिले। तुम्हारा सुहाग ही बचना था, इसलिए सकुशल आ गया। नहीं तो आज आना बहुत मुश्किल था।'
पत्नी बोली- 'भले आदमी ! जान बच गई पर वह सामान की पोटली कहां है?'
पति- 'वह तो उनके पास रह गई।'
पत्नी ने तत्काल पोटली सामने रखते हुए कहा-'यह पोटली लो, वहां कोई पचीस नहीं थे। अकेली मैं थी।' पति ने किचिंत् शर्म का अभिनय करते हुए कहा- 'अच्छा तुम थी ! मुझे यह तो लगा था कि पोलापोला हाथ पोमले की मां जैसा है।'
कायर को कृपाण दो, चाहे और कुछ दे दो। जो कायर है, वह अपनी सुरक्षा नहीं कर पायेगा।
लक्ष्म्याः किं कृपणैः वृथा। एक कृपण आदमी के पास बहुत धन है। लक्ष्मी की बड़ी कृपा है पर कृपण का धन कोई काम का नहीं होता ।
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गाथा
परम विजय की
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