________________
गाथा
परम विजय की
पुराने जमाने की बात है। कंजूस पति से पत्नी ने कहा-जाओ, बाजार से शाक ले आओ। वह एक पैसा लेकर गया। उस युग में एक पैसा भी बहुत होता था। एक पैसे का बहुत कुछ आता था। पैसे को मुट्ठी में एकदम ऐसा बन्द किया कि कहीं गिर न जाए। गर्मी का मौसम। मुट्ठी बिल्कुल बंद। मालिन के पास पहुंचा। शाक-सब्जी को देखा। मोल-भाव किया। कुछ सब्जियां लेने का निश्चय किया। मालिन सब्जी तौलने लगी। कृपण ने बंद मुट्ठी को खोला। हाथ से पसीना चू रहा था। उसने सोचा-पैसा तो रो रहा है। यह मेरा वियोग सह नहीं पा रहा है। उसने करुणा भरे स्वर में कहा
पैसा हूं तन भांज स्यूं, तनै न भांजू वीर!
क्यूं रोवै तू रंग में, तुझ मुझ सांचो सीर।। पैसा! रो मत। तुम राजी रहो। क्योंकि तेरा-मेरा तो इतना संग है, एक संबंध सा जुड़ गया है। यह शरीर भले ही चला जाए पर तुझे तो नहीं छोडूंगा।
वह शाक-सब्जी लिए बिना घर आ गया। पत्नी से बोला मैं शाक-सब्जी तो नहीं ला सका। यह तुम्हारा पैसा वापिस ले लो। __समुद्रश्री बोली-'मैं कहना भी नहीं चाहती। पति की अवमानना, अवहेलना करना भी नहीं चाहती किन्तु यथार्थ को छिपा भी नहीं सकती। यथार्थ यह है
यथांधे नर्तनेनापि, गानेन बधिरे न हि।
कातरैः किं कृपाणेन, किं लक्ष्म्या कृपणैः वृथा।। जम्बूकुमार नृत्य को देखने में अंधा, संगीत को सुनने में बहरा और शस्त्र को उठाने के लिए कायर और लक्ष्मी का प्रयोग करने के लिए कंजूस है। हम इससे क्या बात करें? हमारे चिन्तन में इतनी दूरी बढ़ गई है कि उसको कैसे व्यक्त करें?' । ____ यह अध्यात्म और पदार्थ की दूरी रहती है। ये दो भिन्न दिशाएं हैं। अध्यात्म में जाना एक दिशा है और पदार्थ-भोग के प्रति आकृष्ट होना अलग दिशा है। इसीलिए भगवान महावीर ने कहा
अणुसोयपट्ठिए बहुजणम्मि पडिसोय लद्धलक्खेणं।
पडिसोयमेव अप्पा, दायव्वो होउ कामेणं।। सारा संसार अनुस्रोत में जा रहा है, स्रोत के पीछे जा रहा है। स्रोत है हमारी इंद्रियां। सारा संसार इंद्रियों के पीछे दौड़ रहा है। एक इंद्रिय चेतना को हटा दो, संसार बचेगा नहीं। इंद्रियों के पीछे चल रहा है व्यक्ति। कोई शब्द के पीछे दौड़ रहा है, कोई रूप के पीछे दौड़ रहा है, कोई रस के पीछे दौड़ रहा है। आज तो दौड़ बहुत अधिक हो गई है। आज के संसाधन ऐसे हैं कि कहीं होने वाली घटना को कहीं देखा जा सकता है। पुराने जमाने में दिल्ली, कोलकाता, मुंबई में खेल होता तो लाडनूं वाले नहीं देख पाते। आज तो दुनिया में कहीं क्रिकेट मैच हो रहा है। अपने घर में बैठा व्यक्ति उसे देख लेता है। इंद्रियों की लोलुपता के बढ़ने का आज जैसा अवसर आया है, अतीत में नहीं था। पुराने जमाने में कहीं कोई हत्या होती, हिंसा होती, लड़ाई होती तो उसी गांव तक उसका प्रभाव होता। सौ कोस, चार सौ कि.मी. की दूरी पर घटना होती तो महीनों तक पता ही नहीं चलता। आज दो मिनट में पता लग जाता है कि कहां लड़ाई हो रही है? कहां क्या हो रहा है? इंद्रिय चेतना को खुलकर खेलने का मौका आज के युग में उपलब्ध है। इंद्रियों के पीछे सारा संसार दौड़
१६७