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के द्वारा। मैंने ही तो अमृत दिया था। आज देवता अमृतभोगी बन गये। अमृत खाते हैं, अमृत पीते हैं पर अमृत आया कहां से? मैंने ही अमृत का दान किया था। समुद्र में से निकला था अमृत।
श्रियामुररीतुं-मैंने श्रीकृष्ण को भी एक बड़ा अवदान दिया था लक्ष्मी का। लक्ष्मी कहां से आई? वह मेरे से ही निकली थी।
मैंने मर्यादा के द्वारा पृथ्वी को भी सुंदर बनाया। पृथ्वी की मर्यादा कौन कर रहा है? मैं ही तो कर रहा हूं।
कल्पवृक्ष हैं देवलोक में। कल्पवृक्ष कहां से आया? मैंने ही तो दिया था वह कल्पवृक्ष। ___महादेव शंकर के ललाट पर चन्द्रमा आया कहां से? शिवजी को वह चन्द्राकार चिह्न मैंने ही तो दिया
था।
गाथा परम विजय की
___ मैनाक आदि पर्वतों को किसने बचाया? जब इन्द्र ने वज्र से इन पर्वतों को चूर-चूर करना चाहा तब मैंने ही मैनाक आदि पर्वतों को अपनी गोद में शरण दी थी।
आज जब अगस्त्य ऋषि मुझे तीन चुल्लू में पी जाना चाहते हैं तब कोई काम नहीं आ रहा है। न देवता काम आ रहे हैं, न शंकर काम आ रहे हैं, न श्रीकृष्ण काम आ रहे हैं और न वे पर्वत काम आ रहे हैं, न अमृत और कल्पवृक्ष काम आ रहे हैं। सब अपने स्वार्थ में लीन हैं।' ___ समुद्रश्री ने कहा-'प्रियतम! तुम सम्यक् सोचो। कठिन परिस्थिति में कोई काम नहीं आयेगा। आप पश्चात्ताप करेंगे इसलिए हमारी बात मानिए-जल्दबाजी में कोई काम मत कीजिए। आपको दीक्षा लेनी है, यह अच्छी बात है पर कम से कम सात-आठ वर्ष परिवार के साथ रहें। विवाह किया है, जो संबंध स्थापित किया है, उसमें समरस बनें। जो संयोग बना है, उसको भी महत्त्व दें। आज विवाह किया और आज ही दीक्षा की बात प्रारंभ कर दी। यह जल्दबाजी अच्छी नहीं है। काम करो तो ढंग से करो, सोच समझकर करो।
प्रियतम! नीतिकार कहते हैं-सहसा विदधीत न क्रियां, अविवेकः परमापदां पदं।
जल्दबाजी में काम मत करो। जिसमें विवेक नहीं है, वह बिना सोचे-विचारे जल्दबाजी में काम करता है। यह अविवेक परम आपदा का स्थान होता है।
प्रियतम! जल्दबाजी में काम करने वाला हमेशा पछताता है। कुछ समय ठहरो, परिवार में रहकर साधना करो, फिर दीक्षा की बात सोचना। आप यह चाहते हैं कि मैं शीघ्र मुनि बन जाऊं पर यह कैसे होगा?'
ए मन गमता सुख छोड़ने, यांसूं अधिकी करौ छो टाप।
जिम पिछतायौ बग नामा करसणी, तिम पछतावोला आप।। 'प्रियतम! मैं आपको सही बात कहती हूं-जो प्राप्त है, उसको तो आप छोड़ रहे हो और जो अप्राप्त है, उसके लिए जा रहे हैं। आपको वैसे ही पश्चात्ताप करना पड़ेगा, जैसे बग नाम के किसान ने किया था।' ___ जम्बूकुमार ने अपना मौन खोला-'समुद्रश्री! कौन था बग किसान? कैसे पछताया था वह?' १७२