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द। मेरा तो स्पष्ट विचार पहले भी था। मैंने धोखा नहीं किया है। पहले तुम्हें बता दिया था कि मुझे मुनि बनना है, मैं मुनि बनूंगा और अब भी मेरा वही दृढ़ संकल्प है। मैं तो यह जानना चाहता हूं कि तुम पीछे क्या करोगी?'
जम्बकुमार ने चिनगारी लगा दी। अब कन्याओं ने मौन खोला। जब आग सुलगा दी गई, चिनगारी लगा दी गई तो फिर आग भड़केगी। ____ एक बाबा चिलम पी रहा था। चिलम पीते-पीते चल रहा था। पास में घास की बागर थी। बाबा आगे निकला और बागर में आग लग गई, लोगों ने खोजा-आग लगी कैसे? कौन व्यक्ति आया, जिसने लाय लगा दी। खोजते-खोजते बाबा की झोपड़ी के पास पहुंचे, बोले-'बाबाजी! आपने आग लगाई?'
'नहीं, मैंने नहीं लगाई। 'तो कैसे लगी?' 'मुझे तो पता नहीं?' 'बाबाजी! आप इधर से आये थे?' 'हां आया था।' 'चिलम पी रहे थे?' 'हां, पी रहा था। 'आपने कुछ किया?' 'और तो कुछ नहीं किया पर चिलम से एक चिनगारी उधर उछल गई।' 'महाराज! एक चिनगारी घास जलाने के लिए काफी होती है।' संन्यासी ने स्पष्टीकरण देने का प्रयत्न किया-मैंने चिनगारी फेंकी, मैंने आग नहीं लगाई।' लोगों ने कहा-'आग फिर कैसे लगती है? चिनगारी फेंक दी तो लाय लग गई।'
जम्बूकुमार ने चिनगारी डाल दी। सबके मन में जो एक आक्रोश था, जो वेदना थी, उसको उभार दिया। अब सब बोलने के लिए तैयार हो गई।
ज्येष्ठा समुद्रश्री बोली-स्वामी! आपका यह संकल्प है कि मैं मुनि बनूंगा तो आप पहले इस प्रश्न का उत्तर दें-आपको मुनि बनना था तो हमारे साथ फिर यह संबंध क्यों स्थापित किया? आप कहते हैं कि मैंने धोखा नहीं किया? आपने विवाह होने से पहले बताया किन्तु क्या सगाई से पहले बताया?'
'नहीं।'
'स्वामी! जब एक बार संबंध स्थापित कर लिया, सगाई कर ली, अब तोड़े तो कठिनाई, न तोड़े तो कहां जाएं? आप कहते हैं कुछ नहीं किया। आपने अच्छा नहीं किया। अगर आपको साधु बनना था तो आपने सगाई का संबंध भी क्यों स्थापित किया? आपको साधु बनना था तो संबंध नहीं करते। न आपको कोई चिन्ता और परेशानी होती, न हमें कोई चिन्ता और परेशानी होती। आप अपने घर में मस्त और हम १६२
गाथा परम विजय की