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गाथा परम विजय की
इच्छा प्राणी का लक्षण है। जड़ में कोई इच्छा नहीं होती। जैसे-जैसे चेतना का विकास होता है, मन का विकास होता है, इच्छा-शक्ति और प्रबल बन जाती है। इच्छा पैदा हुई और पूर्ति होती है तो सुख मिलता है। इच्छा पैदा हुई और पूर्ति नहीं होती है तो दुःख होता है।
माता की एक इच्छा पूरी हो गई। यह चाह थी कि विवाह हो जाए। विवाह सम्पन्न हो गया पर इच्छा कभी समाप्त नहीं होती। इच्छा का तो बहुत विस्तार होता है। भगवान महावीर ने कहा-इच्छा हु आगाससमा अणतया इच्छा आकाश के समान अनन्त है। यह ऐसा रबर है कि खींचते चले जाओ, बढ़ता चला जायेगा। आकाश जितना बड़ा है उतनी बड़ी है इच्छा इसीलिए एक पूरी होती है, दूसरी पैदा हो जाती है। सबकी सब इच्छाएं पूरी नहीं होतीं। इच्छा पूरी हुई तो सुख मिला। इच्छा अधूरी रह गई तो दुःख उत्पन्न हो गया। इच्छा और चाह के साथ दुःख जुड़ा हुआ है। जहां इच्छा है चाह है वहां दुःख होना स्वाभाविक है। ऐसा व्यक्ति, जिसके मन में कोई चाह न हो, कोई इच्छा न हो, कभी दुःखी नहीं बनता। उसे कोई दुःखी बना नहीं सकता। जहां चाह है वहां दुःख है।
बुद्ध से पूछा गया सबसे सुखी कौन है?' __बुद्ध ने धर्मसभा के अंतिम छोर पर बैठे व्यक्ति की ओर संकेत करते हुए कहा-'जो अंतिम छोर पर बैठा है, वह आदमी सबसे ज्यादा सुखी है।' ___ बुद्ध के सामने अनेक धनी लोग बैठे थे। राजा बैठा था, सामन्त बैठे थे। बुद्ध ने उनको सुखी नहीं बताया। किनारे पर जो गरीब आदमी बैठा है, वह सबसे ज्यादा सुखी है यह कैसे हो सकता है?
एक संभ्रांत नागरिक ने प्रतिप्रश्न किया-'भंते! क्या उससे ज्यादा कोई सुखी नहीं है?' 'वर्तमान में वह परम सुखी है।' 'यह आप कैसे कह सकते हैं?'
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