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श्रेष्ठी ने कहा-'तुमने जो निर्णय लिया है, यह पराजय का निर्णय है। तुम्हारी पराजय हो गई। जम्बूकुमार जीत गया, उसकी बात रह गई। तुम्हारी जीत तो तब होती जब जम्बूकुमार यह मान लेता इनके साथ विवाह . करना है तो मुझे घर में रहना पड़ेगा। जम्बूकुमार तो अपने निश्चय पर अटल है मैं दीक्षा लूंगा। तुम कहती हो हम उसके साथ ही शादी करेंगी। क्या यह तुम्हारी पराजय नहीं है?' ____ ज्येष्ठ कन्या समुद्रश्री बोली-'पिताश्री! आप समझदार हैं, बहुत अनुभवी हैं। आप तो यह जानते हैं कि हार और जीत क्या है?'
हार-हार से विजय निकलती, तम से पाते तेज सितारे।
__ वह हारे जिसको मन मारे, वह जीते जो मन को मारे।। 'पिताश्री! विजय कोई अलग से नहीं आती। पहले क्षण में कोई विजय नहीं होती। हारते-हारते विजय मिल जाती है। हार में से भी विजय निकल आती है।'
'पिताश्री! रात को सितारे चमकते हैं। चमक कहां से आती है? वे दिन में तो नहीं चमकते। चांद रात को चमकता है और दिन में बादल का टकडा सा बन जाता है। उसमें चमक कहां से आती है।' अंधकार होता है तो उनमें चमक आ जाती है। अंधकार नहीं है तो चमक भी नहीं आती। जो तारे रात
को चमकते हैं, दिन में उनका पता ही नहीं चलता। सूर्य का पूर्ण ग्रहण
होता है तब दिन में भी तारे दिखते हैं पर उनमें वह चमक नहीं होती, जो रात को होती है।
पिताश्री! हार में से विजय निकलती है। अंधकार में से प्रकाश, ज्योति निकलती है। पिताश्री! जिसको मन मारता है, वह हार जाता है। जो अपने मन को मार लेता है, वह जीत जाता है, विजयी बन जाता है। आप चिंता न करें, हमने मन को तौल लिया है। हमारा मन हमारी मुट्ठी में है। जो भी स्थिति आयेगी, उस स्थिति का हम मुकाबला करेंगी, उस स्थिति से जूझेंगी। यह हमारी जुझारू वृत्ति है।' ___ 'पिताश्री! आप यह न समझें कि हम अबला हैं। हमारे भीतर ऊर्जा है, प्राण शक्ति है। हम सबने मिलकर अपने आपको तौल लिया है, कोई चिंता की बात नहीं है। आप अपने मन को मजबूत बना लें। हमने अपना निर्णय बता दिया है, आप क्या सोचते हैं? यह निर्णय का समय है।'
मुहुत्ताणं मुहुत्तस्स मुहत्तो होई तारिसो। भगवान महावीर की वाणी है-कोई कोई ऐसा मुहूर्त आता है, कोई कोई ऐसा क्षण आता है, जिस क्षण में आदमी निर्णय लेता है और वह निर्णय बहुत सफल हो जाता है।
गाथा
परम विजय की
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