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गाथा
कोयल बोली-'भैया! मैं स्वर्गलोक में गई थी। इन्द्रसभा की अतिथि बनी थी। वहां मैंने संगीत सुनाया। इन्द्र बड़ा खुश हुआ। खुश होकर उसने उपहार में मुझे यह हार दिया है।'
अतिथि बनी थी इन्द्र सभा की, सुना सभी ने मेरा गान।
उससे खुश हो कर सुरपति ने, हार किया है मुझे प्रदान। यह बात सुनते ही मन में ईर्ष्या की अग्नि भड़क उठी। उसने सोचा-अरे! कोयल हार ले आई और मैं वंचित रह गया। अब मैं भी जाता हूं। मैं एक नहीं, दो हार लाऊंगा। वह कब ठहरने वाला था। तत्काल स्वर्ग में चला गया। इन्द्रसभा में पहुंचा, बोला-'मैं भी गायक हूं, गाना चाहता हूं।'
कब ठहरने वाला था वह, पहुंच गया सहसा सुरलोक।
अपना हाल सुनाकर गायन, शुरू किया खिल खिल अस्तोक।। इन्द्र ने कहा-गाओ, तुम भी गाओ।'
कौए का गान शुरू हुआ। जैसे ही कौए ने क्रौं-क्रौं करना शुरू किया, देवताओं के कान फटने लग गये। कौए की कर्कश आवाज से सब क्षुब्ध हो गए। वे कोमल कान मधुर गीत सुनने के रसिक थे। जहां मंद मधुर स्वर-लहरी चलती रहती है, वहां पंचम-सप्तम स्वर आ गया
सात स्वर होते हैं-१. षड्ज, २. ऋषभ, ३. गांधार, ४. मध्यम, ५. पंचम, ६. धैवत, ७. निषध। कौआ पंचम-सप्तम सुर में गाने लगा। चारों ओर से मौन-मौन की आवाजें आईं।
फटने लगे कान सुर गण के, मौन मौन की उठी आवाज।। कौआ बोला-'इन्द्र महाराज! मेरी एक भूल हो गई। मैं अकेला आ गया। मैं साज-बाज लेकर नहीं आया। आप मुझे आज्ञा दें, मैं अभी दो मिनट में अपना पूरा साज-बाज लेकर आता हूं।'
कृपया दो आज्ञा दो क्षण में, लेकर आऊं पूरा साज।। इन्द्र ने पूछा-क्या है तुम्हारा साज-बाज?' ___ 'इंद्र महाराज! मेरा साज-बाज क्या पछते हैं? मैं एक गधे को लेकर आऊंगा, जिसकी प्रखर ध्वनि है। एक ऊंट को लाऊंगा, उसका घोष निराला है। कुत्ते की तारीफ तो मैं कर नहीं सकता। उसका स्वर मतवाला है।'
खर प्रखर ध्वनि है जिसकी, ऊंट घोष निराला है।
कुत्ते की तारीफ करूं क्या, उसका स्वर मतवाला है।। इन्द्र ने हाथ जोड़ते हुए कहा-बस रहने दो। पधारो आप। एक तुम्हारे गायन से ही हमारा देव समाज क्षुब्ध हो गया है। सब कांप उठे हैं। इन सबको लाओगे तो पता नहीं स्वर्ग का क्या हाल होगा? धन्य हो मां वसुन्धरा! धन्यवाद है तुम्हें कि तुम इन सबकी आवाजों को सहन कर रही हो।'
हाथ जोड़ बोला सुरनायक, रहने दो सब मित्र पियारे। फट गये हैं कान हमारे, कांप उठे हैं स्वर्ग किनारे।। एक तुम्हारे गायन से ही, क्षुब्ध हमारा देव समाज। धन्य हो मां वसुंधरा तुम, सहती हो सबकी आवाज।।
परम विजय की
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