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ईर्ष्या का चक्र बड़ा भयंकर होता है। मां-पत्री ने पछा-क्या किसी में ईर्ष्या जाग उठी है? क्या किसी ने आपको सताया है, जिससे इस प्रकार उदास हो गये हैं? इस दनिया में बिना मतलब लोग ईर्ष्या करते हैं, , झगड़ा-कलह करते हैं तो आपके साथ कुछ न कुछ ऐसा हआ है, अन्यथा आपका चेहरा इतना मुरझाता नहीं। आप इतने चिन्तातुर नहीं बनते। आप बतायें कि वास्तव में समस्या क्या है?'
सेठ बोला-'संशय मत करो। किसी पर दोषारोपण मत करो। न किसी ने सताया है, न कोई मुझे ईर्ष्यालु मिला है, न कोई झगड़ालू मिला है। सचाई कुछ दूसरी ही है।'
'तो क्या हुआ है पिताश्री!'
सेठ ने तत्काल जेब में हाथ डाला, भोजपत्र निकाला. सामने रखा और कहा-'लो पढ़ो, क्या लिखा है?'
पत्नी और पुत्री ने पत्र को पढ़ा। सब पर एकदम जैसे दुःख का पहाड़ गिर पड़ा। सेठ बोला-'तुमने मेरी चिंता का कारण जान लिया।'
पत्री की ओर उन्मुख होते हए पछा-'बोलो. तम्हारी क्या इच्छा है? स्थिति भयंकर बन गई है। तुम क्या चाहती हो?'
पुत्री का गला अवरुद्ध हो गया। उसकी आंखों के आगे अंधियारा-सा छा गया। आंखों से अश्रु की धारा बह चली। वह बेसुध-सी धरती पर गिर पड़ी।....
संदेशवाहक क्रमशः प्रत्येक श्रेष्ठी की पेढी पर पहुंचा। उन्हें जम्बकमार का संदेश सौंपा। सभी श्रेष्ठी संदेश पढ़कर चिन्ताकुल बन गए। वे तत्काल आपण को बंद कर प्रासाद में आए। अपनी पत्नी और पुत्रा को सारी स्थिति की अवगति देते हुए संदेश-पत्र दिखाया। श्रेष्ठी परिवारों में उत्साह और उल्लास का स्थान मायूसी और निराशा ने ले लिया। पूरे परिवार में तनाव, चिन्ता और आर्तध्यान का वातावरण बन गया। कन्याएं अन्यमनस्क और किंकर्तव्यविमुढ बन गईं। उनके चेहरों पर विषाद और चिन्ता की लकीरें खिंच
गाथा परम विजय की
ईं।....
हम क्या करें? अब हमारा क्या होगा?
क्या हमारे सपनों का महल ढह जाएगा? ___ यह प्रश्न आठों कन्याओं के हृदय को कचोट रहा था किन्त इसका समाधान क्या है और वह कहां ? आज यह कोई नहीं जानता था।
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