________________
गाथा परम विजय की
प्राचीन युग में एक समस्या दी गई - असारे खलु संसारे किं सारं विद्यतेऽधुना ? न जाने कितने लोगों ने इस समस्या को पूरा किया, पर संयम की बात सामने नहीं आई। कहा गया- असार संसार में भोग सार है- असारे खलु संसारे सारं सारंगलोचना । असार संसार में मिठाई खाना सार है - असारे खलु संसारे सारं सुस्वादुभोजनम्। आदि आदि बहुत सार प्रस्तुत किये गये। अपनी दृष्टि से निष्कर्ष निकाला जाता है और आदमी मानता है कि बस जीवन का सार यही है।
मैंने एक भाई से कहा—'तुम बीमार हो । शुगर की बीमारी है। मिठाई बहुत खाते हो। छोड़ दो, अच्छा नहीं है। आहार का संयम होगा, त्याग होगा और साथ-साथ स्वास्थ्य में भी लाभ होगा। '
दो-चार मिनिट वह सोचता रहा, सोचकर बोला- 'महाराज ! आप ही तो हमें उपदेश देते हैं कि जीवनश्वर है । एक दिन सबको मरना है। यदि मिठाई खाते-खाते दो-चार वर्ष पहले मर जाऊंगा तो क्या बिगड़ेगा? मिठाई छोड़कर चार वर्ष अधिक जीऊंगा तो क्या भला होगा ?'
'सार' की मीमांसा की बुद्धि अपनी-अपनी होती है। एक परिवार आया, भाई ने कहा- 'मेरी पत्नी बहुत बीमार रहती है। आप कोई जप बताएं।' मैंने कहा - 'जप तो बाद में, पहले यह बताओ - आहार का संयम करती है या नहीं। आहार का संयम है तो जप भी काम देगा और आहार का संयम नहीं है तो जप भी काम नहीं देगा।'
आयुर्वेद में स्वास्थ्य के संदर्भ में कहा गया- यदि पथ्य भोजन है तो दवा लेने से मतलब क्या ? अगर कुपथ्य भोजन करते हो तो दवा लेने से मतलब क्या?
यदि सुपथ्यं किमौषधसेवनेन? यदि कुपथ्यं किमौषधसेवनेन ?
उस समय एक मुनिजी मेरे पास बैठे थे। वे बोले- इस बहिन के पिताजी कहते थे-वणिक् जाति का व्यक्ति अगर आमरस और बादाम की कतली खाते-खाते मर जाए तो कोई चिंता की बात नहीं ।
मैंने कहा- 'यह चिन्तन का कोण है तो फिर दवा की भी जरूरत नहीं और जप की भी जरूरत नहीं। ' हमें धारणा को भी बदलना होगा कि आखिर सार क्या है ? इस असार संसार में इस असार शरीर से क्या सार निकाला जा सकता है?
जम्बूकुमार ने कहा-मां ! मैंने सार को समझ लिया। इस असार संसार में संयम की साधना करना सार है।'
मां ने कहा—'बेटा! यह बहुत अच्छी बात है। बहुत अच्छा सार निकाला है तुमने । वे धन्य हैं, जो संयम की साधना करते हैं।'
मां यह कैसे सोच पाती कि जम्बूकुमार स्वयं ही साधना करने वाला है। अभी तक तो वैराग्य की बात ही चल रही है। मां ने जम्बूकुमार के कथ्य का समर्थन किया-'बेटा! इस दुनिया में त्याग ही सार है, संयम ही सार है। इस शरीर से जितनी संयम की साधना हो जाये, जितना त्याग और व्रत हो जाए, जितनी तपस्या हो जाये, वह श्रेयस्कर है। यह सात धातु का पुतला, हाड़-मांस का पुतला, इसका सार यही है । उसके सिवाय तो भीतर असार असार पड़ा है। संयम ही सार है । '
११५