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है। माता-पिता का आग्रह है कि मैं एक बार विवाह करूं। मैं यह नहीं चाहता था फिर भी माता-पिता की अंतिम इच्छा को पूरा करने के ।। लिए मैंने उनके आग्रह को स्वीकार किया है। विवाह के बाद । मैं दीक्षा लूंगा यह मेरा संकल्प है। मैं विवाह से पूर्व अपने संकल्प की जानकारी आपको दे रहा हूं। इस अवस्था में आप विवाह करना चाहें तो आपकी इच्छा है और न करना चाहें तो आप इस संबंध को तोड़ने के लिए स्वतंत्र हैं।'
जम्बूकुमार ने इस संदेश की आठ प्रतिलिपि की। प्रत्येक संदेश को एक मंजूषा में बंद किया और आठों संदेश संदेशवाहक को सौंप दिए। ___पुराने जमाने में संबंध तोड़ना बड़ी समस्या थी। आज तो संबंध का होना और टूटना एक सामान्य घटना जैसा हो गया है पर उस युग में एक बार संबंध होने के बाद सहसा तोड़ा नहीं जाता था। उस युग में संबंधों का जो मूल्य था, वर्तमान युग में वह मूल्य बदल गया।
जम्बूकुमार के मन में एक भार था कि कहीं भी माया न हो, छल-कपट न हो, दूसरे के साथ धोखा न हो जाए। परम विजय की यह चिन्तन बहुत बड़ी बात है। धोखा होता है तो कभीकभी ऐसी चोट लगती है कि मरणान्तक कष्ट पहुंचता है। बहुत लोग कहते हैं-धन चला गया। कोई खास चिंता की बात नहीं है पर उसने मेरे साथ धोखा कर लिया, इसका
बड़ा कष्ट है। जम्बूकुमार के मन का भार हलका हो गया। उसने सोचा-अब जो होना होगा, वह होगा पर मैं किसी को धोखा नहीं दे रहा हूं।
संदेशवाहक प्रथम श्रेणी के पास पहुंचा, नमस्कार किया, कहा-मैं ऋषभदत्त श्रेष्ठी के प्रासाद से आया
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श्रेष्ठी ने सम्मान देते हुए पूछा-'संदेशवाहक! क्यों आये हो।' उसने कहा-संदेश लेकर आया हूं।' 'किसका संदेश?' 'जम्बूकुमार का। 'ओह! कंवर साहब ने संदेश भेजा है।'
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