________________
.
.
.
.
.
(
U
गाथा परम विजय की
अंतर्द्वन्द्व से बाहर आना बहुत बड़ी समस्या है। कुछ उलझनें ऐसी होती हैं कि इधर जाएं तो समस्या, उधर जाएं तो भी समस्या। बीच में कहां रहें? क्या करें? बड़ी कठिनाई होती है। आचारांग सूत्र का एक प्रसिद्ध सूत्र है-नो हव्वाए नो पाराए' न इधर का न उधर का। जम्बूकुमार भी अभी इसी अंतर्द्वन्द्व को भोग रहा है। ___ उसने सोचा-माता का इतना आग्रह। मां यह अंतिम बात कह रही है-अगर तू मेरे को मां मानता है तो मेरी बात मान। अब मैं कैसे कहूं कि मैं तुम्हें मां नहीं मानता। एक ओर मां की बात भी माननी है, दूसरी ओर मैंने ब्रह्मचर्य का व्रत स्वीकार कर लिया है। मैं विवाह कैसे कर सकता हूं?
इस स्थिति में कोई निर्णय लेना बहुत जटिल काम है किंतु मनुष्य का मस्तिष्क बहुत शक्तिशाली है। जिसका मस्तिष्क पवित्र होता है, निर्मल होता है, जिसके मस्तिष्क में बुरे विचार और बुरे भाव नहीं होते, जिसका क्षायोपशमिक भाव प्रबल होता है वह सही निर्णय ले लेता है। वह गंभीर उलझन में से भी निकल जाता है।
साधारण व्यक्ति ऐसा कर नहीं पाता। जम्बूकुमार का मस्तिष्क भावी केवलज्ञानी का मस्तिष्क है, इसलिए उन्हें कोई कठिनाई नहीं हुई। उसने चिंतन किया और एक निष्कर्ष पर पहुंच गया। ___जम्बूकुमार बोला-'माता-पिता! मैं आपको व्यथित करना नहीं चाहता, दुःखी बनाना नहीं चाहता। मैं चाहता हूं-आप भी प्रसन्न रहें और मैं भी प्रसन्न रहूं। मैं दोनों की प्रसन्नता देखना चाहता हूं। मैं आपको दुःखी देखना नहीं चाहता।'
१३२