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जम्बूकुमार का चिंतन संबंध से असंबंध की दिशा में केन्द्रित हो रहा है। उसके चिंतन में वैराग्य को पुष्ट करने वाले उन्मेष आ रहे हैं- 'मैंने इस सचाई का अनुभव कर लिया है कि संबंध शाश्वत नहीं है। संयोग भी शाश्वत नहीं है। जो आज है वह कल नहीं था। मैं पिछले जन्म में भावदेव था तब यह मकान मेरा नहीं था । मैं यहां का निवासी नहीं था। ये माता-पिता भी मेरे नहीं थे। मेरे माता-पिता उस समय कहां थे, यह भी पता नहीं। पिछले जन्म में जो मेरे माता-पिता थे, वे आज मेरे नहीं हैं। पता नहीं कि आज वे कहां हैं? इस जन्म में मेरे माता-पिता दूसरे बन गये हैं। जो पूर्वजन्म में मेरे थे, वे आज मेरे नहीं हैं। जो आज मेरे हैं, वे पूर्वजन्म में मेरे नहीं थे।
संबंध शाश्वत और स्थायी कहां हैं? जो आज है, वह कल नहीं था। जो कल था, वह आज नहीं है। कितने संबंध बनते हैं, बिगड़ते हैं। एक जन्म में भी संबंध टूट जाते हैं तो लोगों को अटपटा लगता है। मन में चिन्तन होता है कि कितना अच्छा संबंध था, गया। यदि पूर्वजन्म को देखें तो प्रश्न होगा- क्या दुनिया का कोई कोना ऐसा है, जहां इस प्राणी ने जन्म-मरण न किया हो। भीष्म ने यह इच्छा व्यक्त की थी—मेरे शरीर का दाह-संस्कार वहां करना, जहां किसी का दाह संस्कार नहीं हुआ है। वैसा स्थान निश्चित कर लिया। दाह संस्कार की तैयारियां हो गईं। कहा जाता है कि उस समय आकाशवाणी हुई—
अत्र भीष्मशतं दग्धं, पांडवानां शतत्रयम्। द्रोणाचार्यसहस्रं तु, कुरु संख्या न विद्यते । ।
जिस स्थान पर दाह संस्कार कर रहे हो, वहां पहले सौ भीष्मों का दाह संस्कार हो चुका है। तीन सौ पांडवों और हजारों द्रोणाचार्यों का दाह संस्कार हो चुका है। कौरवों की कोई संख्या ही नहीं है।
अनंत काल में जीव ने जितने संबंध बनाये हैं, क्या उनकी कोई सीमा है? कभी किसी को माता बनाया, कभी किसी को पिता बनाया। कभी कोई पत्नी बन गई, कभी कोई पति बन गया। कभी बेटा बन गया, कभी कोई भगिनी और भागिनेय बन गया।
सर्वे पितृभ्रातृपितृव्यमात्री, पुत्रांगजास्त्रीभगिनीस्नुषात्वम्। जीवाः प्रपन्ना बहुशस्तदेतत्, कुटुम्बमेवेति परो न कश्चित् ।।
जब हम व्यवहार के जगत् में जीते हैं तब वर्तमान का लेखा-जोखा हमारे सामने रहता है। अगर हम अतीत में जाएं, पूर्वजन्म की श्रृंखला में चले जाएं और वहां संबंधों के संसार का साक्षात्कार करें तो मनुष्य का मस्तिष्क चकरा जाए। संबंध इतने जटिल और गुंथे हुए हैं, जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।
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गाथा
परम विजय की
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