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रत्नचूल और मृगांक दोनों आमने-सामने खड़े हो गये। दोनों ने जम्बूकुमार को प्रणाम किया। कुमार अवस्था में छोटा था, राजा भी नहीं था। वे तो राजा थे, विद्याधर थे। किंतु अवस्था क्या कहती है? राजा होने न होने से क्या अन्तर आता है? 'बलं प्रमाणम् न वयः प्रमाणम्'-बल प्रमाण होता है शक्ति प्रमाण होती है, अवस्था नहीं। जम्बूकुमार इतना शक्तिशाली था कि दोनों ने सिर झुकाकर नमस्कार किया, कहा-'कुमार! आप मध्यस्थ रहना, तटस्थ रहना, हम युद्धभूमि में जा रहे हैं।' __जम्बूकुमार भी साथ में वासुदेव बनकर गया। महाभारत में वासुदेव कृष्ण युद्ध में नहीं उतरे किंतु सारथि बनकर युद्धभूमि में रहे। जम्बूकुमार ने सोचा-'क्या होता है, देखता हूं।'
एक ओर अहंकार है, जो पराजय से फिर पैदा हुआ है तो दूसरी ओर विजयोन्माद है। अहंकार और उन्माद बड़ा भयंकर होता है। कोई अनर्थ न हो जाए, इस दृष्टि से जम्बूकुमार जागरूक बना हुआ था।
दोनों विद्याधरों ने पुनः माया-युद्ध शुरू कर दिया। विद्या के अस्त्र चलाये। एक ने अंधड़ चलाया, दूसरे ने वर्षा कर दी। एक ने अग्नि का प्रकोप किया तो दूसरे ने जल की बूंदें गिराकर अग्नि को बुझा दिया। घंटों तक विद्या के अस्त्र चलते रहे। अंत में रत्नचूल ने नागपाश का प्रयोग किया। नागपाश एक मंत्रजनित विद्या है। जब उसका प्रयोग करते हैं तो सांप ही सांप निकलते हैं और भयंकर सांप व्यक्ति को चारों ओर से बांध लेते हैं। उस नागपाश को काटना हर किसी के लिए संभव नहीं है। रामायण का प्रसंग है कि हनमान ने नागपाश को तोड़ा था पर हर कोई तोड़ नहीं सकता। बहुत दुष्कर है नागपाश के बंधन को तोड़ना। मृगांक के पास उसका प्रतिपक्ष/विरोधी शक्ति नहीं थी। मृगांक नागपाश के प्रयोग को विफल नहीं कर सका। आदमी लौह की बेड़ी को तोड़ सकता है किंतु नागपाश को तोड़ नहीं सकता। मृगांक बंध गया। अब क्या करे? रत्नचूल बड़ा खुश हुआ। वह बंधन से बद्ध मृगांक को लेकर अपनी छावनी की ओर जाने लगा।
जम्बूकुमार यह देखते ही आगे बढ़ा, बोला-'रत्नचूल! ठहरो। तुम मृगांक को ले जा नहीं सकते।'
रत्नचूल जम्बूकुमार के पौरुष को जानता था फिर भी जब क्रोध और अहंकार का आवेश होता है,
आदमी भूल जाता है। इतना भूल जाता है कि कुछ भी याद नहीं रहता। अगर आवेश नहीं होता तो मनुष्य की स्मरण
गाथा परम विजय की
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